हिंदी व्याकरण में विशेषण का महत्व सबसे प्रमुख माना गया है. क्योंकि, यह संज्ञा और सर्वनाम का विशेषता व्यक्त करने का कार्य करता है. संज्ञा और सर्वनाम की व्यख्या बिना Visheshan के करना संभव नही है. इसलिए, देश के विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं में विशेषण सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते है.
व्याकरण के इस भाग यानि विशेषण को सरलता से समझने में लिए यहाँ विशेष की परिभाषा और भेद, नियम, अवस्था, रचना, उदाहरण आदि को व्यक्त किया गया है. जो सभी परीक्षाओं के लिए आवश्यक होने के साथ-साथ अच्छा मार्क्स दिलाने में भी मदद करता है.
विशेषण के महत्वपूर्ण बिन्दु
- संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता व्यक्त करने के लिए विशेषण का प्रयोग किया जाता है।
- हिंदी व्याकरण के अनुसार जिस शब्द की विशेषता बतायी जाती है उसे विशेष्य कहा जाता हैं।
- व्याकरण में विशेषण एक विकारी शब्द है।
- विशेषण सार्थक शब्दों के आठ भेदों में एक है।
विशेषण की परिभाषा
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता (गुण, दोष, संख्या,परिमाण, रंग, आकार, दशा आदि) बतलाए, उसे विशेषण कहते हैं। जैसे- सुंदर, कुरूप, लंबा, नाटा, अच्छा, बुरा, हलका, भारी, चतुर, मूर्ख, लाल, पीला, कुछ, थोड़ा, दो, चार, गोल, चौड़ा, दुबला, पतला आदि।
सटीक परिभाषा, विशेषण किसे कहते है?
संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता व्यक्त करने वाले शब्द को विशेषण कहते है. जैसे;
सीता/वह सुंदर है। | (गुण) |
गीता/वह कुरूप है। | (दोष) |
तीन लड़के पढ़ रहे हैं । | (संख्या) |
थोड़ा दूध पी लो । | (परिमाण) |
यह/फूल लाल है। | (रंग) |
उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त शब्द – सुंदर, कुरूप, तीन, थोड़ा, लाल इत्यादि संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाते हैं, अतः ये विशेषण हैं।
दुसरे शब्दों में
जो संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताए, उसे ‘विशेषण’ कहते हैं। जिसकी विशेषता बताई जाए, वह ‘विशेष्य’ कहलाता है।
अर्थात, Visheshan एक ऐसा विकारी शब्द है, जो हर हालत में संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता व्यक्त करता है।
विशेष्य किसे कहते है?
जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताई जाए, उसे विशेष्य कहते है। जैसे;
- कलम लाल है.
- प्रियंका बहुत सुन्दर है.
- राम तेज है.
उपरोक्त उदाहरण में लाल, सुन्दर, और तेज “Visheshan” है जबकि कलम, प्रियंका और राम विशेष्य है. क्योंकि, वाक्य में इनकी विशेषता व्यक्त की जा रही है.
विशेषण की विशेषता
- Visheshan व्यकरण एक विकारी शब्द है।
- विशेषण के द्वारा किसी भी वाक्य का स्वरूप स्पष्ट किया जाता है।
- Visheshan के द्वारा संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताई जाती है।
- विशेषण द्वारा हिंदी वाक्य के अर्थ को सीमित रूप प्रदान किया जा सकता है।
- विशेषणों के द्वारा संख्या के दोनो रूपों, निश्चितता और अनिश्चितता का ज्ञान होता है।
- Visheshan का प्रयोग वस्तु को सजीव व मूर्तिमय रूप प्रदान करने के लिए किया करता है।
विशेषण के कार्य
विशेषण के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं-
1. गुण-दोष बतलाना – विशेषण संज्ञा/सर्वनाम के गुण-दोष को बतलाता है। जैसे-
अनुज पढ़ने में तेज है। | (गुण) |
लेकिन, वह डरपोक है। | (दोष) |
2. निश्चित संख्या या परिमाण बतलाना – यह संज्ञा/सर्वनाम की निश्चित संख्या या परिमाण बतलाता है। जैसे-
दो लड़के आ रहे हैं। | (दो लड़के – निश्चित संख्या) |
दो लिटर दूध दो। | (दो लिटर – निश्चित परिमाण) |
3. अनिश्चित संख्या या परिमाण बतलाना – कभी-कभी यह संज्ञा/सर्वनाम की अनिश्चित संख्या या परिमाण भी बतलाता है। जैसे–
कुछ लड़के आ रहे हैं। | (कुछ लड़के – अनिश्चित संख्या) |
थोड़ा दूध पी लो । | (थोड़ा दूध – अनिश्चित परिमाण) |
4. क्षेत्र सीमित करना — यह संज्ञा/सर्वनाम के क्षेत्र को सीमित करता है।
एक लाल रूमाल लाओ। | (सिर्फ लाल – काला, पीला या नीला नहीं) |
उस लड़के को बुलाओ। | (किसी खास लड़के को, किसी दूसरे को नहीं) |
5. दशा, अवस्था या आकार बतलाना – यह संज्ञा/सर्वनाम की दशा, अवस्था या आकार को बतलाता है। जैसे-
वह बीमार है। | (दशा का बोध) |
मैं बूढ़ा हूँ। | (अवस्था का बोध) |
भाला नुकीला है। | (आकार का बोध) |
विशेषण के भेद
विशेषण के मुख्यतः चार भेद हैं
- सार्वनामिक विशेषण
- गुणवाचक विशेषण
- संख्यावाचक विशेषण
- परिमाणवाचक विशेषण
इन चारों भेदों का अध्ययन निचे परिभाषा और नियम के अनुसार करेंगे.
1. सार्वनामिक विशेषण
पुरुषवाचक और निजवाचक सर्वनाम (मैं, तू, वह) के सिवा अन्य सर्वनाम जब किसी संज्ञा के पहले आते हैं, तब वे ‘सार्वनामिक विशेषण’ कहलाते हैं।
दूसरे शब्दों में
जो सर्वनाम विशेषण के रूप में प्रयुक्त हो, उसे सार्वनामिक विशेषण कहते हैं। जैसे- यह, वह, कौन, क्या, कोई, कुछ इत्यादि।
वह नौकर नहीं आया। |
यह घोड़ा अच्छा है। |
यहाँ ‘नौकर’ और ‘घोड़ा’ संज्ञाओं के पहले “Visheshan” के रूप में ‘वह’ और ‘यह’ सर्वनाम आए हैं। अतः, ये सार्वनामिक विशेषण हैं।
व्युत्पत्ति के अनुसार सार्वनामिक विशेषण के भी दो भेद हैं—
(1) मौलिक सार्वनामिक विशेषण:-
जो बिना रूपांतर के संज्ञा के पहले आता है; जैसे—यह घर; वह लड़का; कोई नौकर इत्यादि।
(2) यौगिक सार्वनामिक विशेषण:-
जो मूल सर्वनामों में प्रत्यय लगाने से बनते हैं;
जैसे- ऐसा आदमी; कैसा घर; जैसा देश इत्यादि।
उपर्युक्त शब्द सर्वनाम और विशेषण दोनों हैं। यदि ये क्रिया के पहले प्रयुक्त हों, तो सर्वनाम और संज्ञा के पहले प्रयुक्त हों, तो सार्वनामिक विशेषण होता है। जैसे-
यह देखो। | (क्रिया के पहले – यह- सर्वनाम ) |
यह फूल देखो। | (संज्ञा के पहले – यह- सार्वनामिक विशेषण) |
वह खेलेगा। | (क्रिया के पहले – वह- सर्वनाम) |
वह लड़का खेलेगा। | (संज्ञा के पहले – वह- सार्वनामिक विशेषण) |
सार्वनामिक विशेषण का अन्य उदहारण
वह कौन खेल रहा है? |
वह लड़का पुस्तक पढ़ रहा है. |
यह तुम्हारा घर है। |
कौन लड़का जा रहा है. |
कोई बालक रो रहा है. |
2. गुणवाचक विशेषण
जिस शब्द से संज्ञा का गुण, दशा, स्वभाव आदि लक्षित हो, उसे ‘गुणवाचक विशेषण’ कहते हैं। विशेषणों में इनकी संख्या सबसे अधिक है। इनके कुछ मुख्य रूप इस प्रकार हैं
दूसरे शब्दों में:-
जिस विशेषण गुण, दोष, रंग, आकार, स्वभाव, दशा, अवस्था आदि का बोध हो उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे- अच्छा, बुरा, सच्चा, झूठा, नेक, भला, सुन्दर, कुरूप, आकर्षक, सीधा, टेढ़ा इत्यादि
काल | नया, पुराना, ताजा, भूत, वर्तमान, भविष्य, प्राचीन, अगला, पिछला, मौसमी, आगामी, टिकाऊ |
स्थान | उजाड़, चौरस, भीतरी, बाहरी, ऊपरी, सतही, पूरबी, पछियाँ, दायाँ, बायाँ, स्थानीय, देशीय, क्षेत्रीय, असमी, पंजाबी, अमेरिकी, भारतीय |
आकार | गोल, चौकोर, सुडौल, समान, पीला, सुंदर, नुकीला, लंबा, चौड़ा, सीधा, तिरछा |
रंग– | लाल, पीला, नीला, हरा, सफेद, काला, बैंगनी, सुनहरा, चमकीला, धुँधला, फीका |
दशा | दुबला, पतला, मोटा, भारी, पिघला, गाढ़ा, गीला, सूखा, घना, गरीब, उद्यमी, पालतू, रोगी |
गुण | भला, बुरा, उचित, अनुचित, सच्चा, झूठा, पापी, दानी, न्यायी,दुष्ट, सीधा, शांत |
द्रष्टव्य:– गुणवाचक विशेषणों में ‘सा’ सादृश्यवाचक पद जोड़कर गुणों को कम भी किया जाता है; जैसे- बड़ा-सा, ऊँची-सी, पीला-सा, छोटी-सी।
गुणवाचक विशेषण का अन्य उदहारण
वह भला/अच्छा आदमी है। | (भला/अच्छा गुणबोधक) |
मोहन बुरा/दुष्ट लड़का है। | (बुरा/दुष्ट. अवगुणबोधक) |
कपड़ा लाल/पीला है। | (लाल/पीला रंगबोधक) |
भाला नुकीला/लंबा है। | (नुकीला/लंबा–आकारबोधक) |
मोहन दुबला/मोटा है। | (दुबला/मोटा – दशाबोधक) |
3. संख्यावाचक विशेषण
जिस विशेषण से संज्ञा की संख्या (निश्चित या अनिश्चित) का बोध हो, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे – दो, चार, पहला, चौथा, दोहरा, चौगुना, आधा, पाव, कुछ, बहुत, सैकड़ों, असंख्य आदि ।
दूसरे शब्दों में:-
जिन शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की संख्या लक्षित होती हो, उसे ‘संख्यावाचक विशेषण’ कहते हैं; जैसे- चार घोड़े, तीस दिन, कुछ लोग, सब लड़के इत्यादि। यहाँ चार, तीस, कुछ और सब संख्यावाचक विशेषण हैं।
संख्यावाचक विशेषण के मुख्य दो भेद हैं—
- निश्चित संख्यावाचक
- अनिश्चित संख्यावाचक
1. निश्चित संख्यावाचक:
जिस विशेषण से वस्तु की किसी निश्चित संख्या का बोध हो, उसे निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते है। जैसे – चार घोड़े, तीस दिन आदि।
चार लड़के आ रहे हैं। | (चार लड़के – निश्चित संख्या) |
दस लड़के जा रहे हैं। | (दस लड़के निश्चित संख्या) |
प्रयोग के अनुसार निश्चित संख्यावाचक विशेषण के निम्नांकित प्रकार हैं:
(क) गणनावाचक विशेषण – एक, दो, तीन
(ख) क्रमवाचक विशेषण – पहला, दूसरा, तीसरा
(ग) आवृत्तिवाचक विशेषण– दूना, तिगुना, चौगुना
(घ) समुदायवाचक विशेषण – दोनों, तीनों, चारों
(ङ) प्रत्येकबोधक विशेषण– प्रत्येक, हर-एक, दो-दो, सवा-सवा
गणनावाचक (संख्यावाचक विशेषण) के भी दो भेद हैं—
- (1) पूर्णांकबोधक विशेषण:- जैसे-एक, दो, चार, सौ, हजार तथा
- (2) अपूर्णांकबोधक विशेषण:- जैसे-पाव, आध, पौन, सवा।
पूर्णांकबोधक विशेषण शब्दों में लिखे जाते हैं या अंकों में। बड़ी-बड़ी निश्चित संख्याएँ अंकों में और छोटी-छोटी तथा बड़ी-बड़ी अनिश्चित संख्याएँ शब्दों में लिखनी चाहिए।
2. अनिश्चित संख्यावाचक :- जिस विशेषण से वस्तु की किसी अनिश्चित संख्या का बोध हो, उसे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते है।जैसे – कुछ लोग, सब लड़के इत्यादि।
कुछ लड़के आ रहे हैं। | (कुछ लड़के – अनिश्चित संख्या) |
सब लड़के जा रहे हैं। | (सब लड़के – अनिश्चित संख्या) |
4. परिमाणवाचक विशेषण
जो विशेषण वस्तु के परिमाण या मात्रा का बोध कराए, उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
दूसरे शब्दों में:-
यह किसी वस्तु की नाप या तौल का बोध कराता है। जैसे :- सेर भर दूध, तोला भर सोना, थोड़ा पानी, कुछ पानी, सब धन, और घी लाओ इत्यादि।
यहाँ भी निश्चय और अनिश्चय के आधार पर परिमाणबोधक विशेषण के दो भेद किए गए हैं:
- निश्चित परिमाणबोधक विशेषण- दो सेर घी, दस हाथ जगह, चार गज मलमल
- अनिश्चित परिमाणबोधक विशेषण- बहुत दूध, सब धन, पूरा आनंद इत्यादि
दो लिटर दूध दें। | (दो लिटर. -निश्चित परिमाण) |
तीन मीटर कपड़ा दें। | (तीन मीटर – निश्चित परिमाण) |
थोड़ा दूध चाहिए। | (थोड़ा दूध – अनिश्चित परिमाण) |
बहुत कपड़े चाहिए। | (बहुत कपड़े -अनिश्चित परिमाण) |
अवश्य पढ़े,
प्रविशेषण (Visheshan in Hindi)
विशेषण की विशेषता बतलाने वाले विशेषण को ‘प्रविशेषण’ कहते हैं। यह सामान्यतः विशेषण के गुणों में वृद्धि करता है। जैसे :- थोड़ा, बहुत, अति, अत्यंत, अधिक, अत्यधिक, बड़ा, बेहद, महा, घोर, ठीक, बिलकुल, लगभग आदि।
दूध मीठा है। | (मीठा -संज्ञा की विशेषता विशेषण) |
दूध थोड़ा मीठा है। | (थोड़ा -विशेषण की विशेषता प्रविशेषण) |
वह पाँच बजे आएगा। | (पाँच -संज्ञा की विशेषता विशेषण) |
वह ठीक पाँच बजे आएगा। | (ठीक – विशेषण की विशेषता प्रविशेषण) |
स्पष्ट है कि उपर्युक्त वाक्यों में प्रयुक्त ‘थोड़ा’ एवं ‘ठीक’ शब्द प्रविशेषण है, क्योंकि ये विशेषण की विशेषता बतलाते हैं।
प्रविशेषण का अन्य उदहारण
क्षत्रिय बड़े साहसी होते है। |
अर्चना अत्यंत सुंदर है। |
कश्मीरी सेब सिंदूरी लाल होता है। |
वह लड़की अति सुंदर है। |
काल आ जाना ठीक है। |
विशेष्य और विशेषण
जिस संज्ञा या सर्वनाम शब्द की विशेषता बतलायी जाती है, उस संज्ञा या सर्वनाम शब्द को ‘विशेष्य’ कहते हैं। जैसे-
लड़का लम्बा है। | (लड़का विशेष्य) |
वह लम्बा है। | (वह -विशेष्य) |
कलम लाल है। | (कलम – विशेष्य) |
यह लाल है। | (यह – विशेष्य) |
वाक्य में विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है— कभी विशेषण विशेष्य के पहले प्रयुक्त होता है और कभी विशेष्य के बाद। अतः, प्रयोग की दृष्टि से विशेषण के दो भेद हैं—
- विशेष्य-विशेषण
- विधेय-विशेषण
1. विशेष्य-विशेषण
विशेष्य जो (संज्ञा / सर्वनाम) के पहले आए, उसे विशेषण की विशेष्य विशेषण कहते है। जैसे :-
वह लम्बा लड़का है । | लम्बा – विशेष्य विशेषण |
जितेश चंचल लड़का है। | चंचल – विशेष्य विशेषण |
गीतांजलि सुशील कन्या है। | सुशील – विशेष्य विशेषण |
2. विधेय-विशेषण
जो विशेषण विशेष्य और क्रिया के बीच आए, उसे विधेय विशेषण कहते है। जैसे :-
मेरा कुत्ता काला है। | काला – विधेय विशेषण |
मेरा लड़का आलसी है। | आलसी – विधेय विशेषण |
वह लड़का लम्बा है। | लम्बा – विधेय विशेषण |
अन्य बातें इस प्रकार हैं: ध्यान दे।
(क) विशेषण के लिंग, वचन आदि विशेष्य के लिंग, वचन आदि के अनुरूप होते हैं, चाहे विशेषण विशेष्य के पहले आए या पीछे। जैसे-
अच्छे लड़के पढ़ते हैं। | (अच्छे, लड़के – दोनों बहुवचन, पुलिंग) |
राधा भली लड़की है। | (भली, लड़की – दोनों एकवचन, स्त्रीलिंग) |
वह अच्छा लड़का है । | (अच्छा, लड़का – दोनों बहुवचन, पुंलिंग) |
वह लड़का अच्छा है। | (अच्छा, लड़का – दोनों बहुवचन, पुंलिंग) |
वह अच्छी लड़की है । | (अच्छी, लड़की – दोनों एकवचन, स्त्रीलिंग ) |
वे अच्छे लड़के हैं | (अच्छे लड़के – दोनों बहुवचन, पुंलिंग) |
(ख) यदि एक ही विशेषण के अनेक विशेष्य हों, तो विशेषण के लिंग और वचन समीपवाले विशेष्य के लिंग, वचन के अनुसार होंगे; जैसे-नये पुरुष और नारियाँ, नयी धोती और कुरता।
विशेषणों की रचना
हिन्दी में कुछ विशेषण ऐसे हैं जो मौलिक हैं, जिन्हें किसी शब्द या प्रत्यय के सहयोग से नहीं बनाया जाता। ऐसे विशेषणों को मूल विशेषण कहा जाता है। जैसे :- अच्छा, बुरा, काला, उजला, मोटा, पतला, अमीर, गरीब, छोटा, बड़ा, बूढ़ा, जवान, नया, पुराना, निम्न, उच्च, सुंदर, हलका आदि
इसके विपरीत अधिकांश विशेषण किसी-न-किसी प्रत्यय के जुड़ने से बनते हैं। ये प्रत्यय हैं – अ, अक, अनीय, आ, आई, आऊ, आड़ी, आना, आर, आल, आलू, इंदा, इक, इत, इल, इयल, ई, ईच, ईन, ईला, उ, उक, एय, एरा, एल, ऐल, ओड़, ओड़ा, क, था, दार, नाक, बाज, मंद, मान्, वान्, वाला, वार, वी, ल आदि। ये प्रत्यय संस्कृत, हिन्दी और उर्दू (अरबी-फारसी) के हैं। ये किन- किन शब्दों से जुड़ते हैं, इसे समझें –
(1) कुछ विशेषण अव्ययों में प्रत्यय लगाकर बनाए जाते हैं। जैसे-
बाहर – बाहरी | अंदर – अंदरूनी |
ऊपर – ऊपरी | करीब – करीबी |
भीतर – भीतरी | सामने – सामनेवाला |
(2) कुछ विशेषण दो विशेषणों के मेल से बनते हैं। जैसे–
अच्छा + बुरा = अच्छा-बुरा |
बुरा + भला = बुरा-भला |
छोटा + बड़ा = छोटा-बड़ा |
लम्बा + चौड़ा = लम्बा-चौड़ा |
(3) कभी–कभी विशेषण के द्वित्व से भी नये–नये विशेषण बनते हैं। जैसे–
मोटा-मोटा |
नीले-नीले |
पतला-पतला |
पीले-पीले |
(4) कुछ विशेषण क्रिया में प्रत्यय लगाकर बनाए जाते हैं। जैसे–
क्रिया | विशेषण |
उकट-ना | उकटा |
उखाड़-ना | उखड़ू |
उघट-ना | उघटा |
उजड़-ना | उजाड़, उजड़ी |
उजाड़-ना | उजाड़ |
उड़-ना | उड़ाऊ |
उतार-ना | उतारू |
खा-ना | खाऊ |
खेल-ना | खेलाड़ी |
गा-ना | गवैया |
चल-ना | चलाऊ |
जर-ना | जरिया |
जग-ना | जागिला |
जान-ना | जानकार |
जुड़-ना | जुड़वा |
दे-ना | दिवाल |
भाग-ना | भगौड़ा |
मर-ना | मरियल |
भूल-ना | भुलक्कड़ |
विशेषणों की तुलना
“जिन विशेषणों के द्वारा दो या अधिक विशेष्यों के गुण-अवगुण की तुलना की जाती है, उन्हें ‘तुलनाबोधक विशेषण’ कहते हैं।” तुलनात्मक दृष्टि से एक ही प्रकार की विशेषता बतानेवाले पदार्थों या व्यक्तियों में मात्रा का अन्तर होता है। तुलना के विचार से विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैं—
- मूलावस्था (Positive Degree)
- उत्तरावस्था (Comparative Degree)
- उत्तमावस्था (superlative Degree)
1. मूलावस्था (Positive Degree)
इसके अंतर्गत विशेषणों का मूल रूप आता है। इस अवस्था में तुलना नहीं होती, सामान्य विशेषताओं का उल्लेख मात्र होता है। जैसे—सुंदर, मधुर, महत, वीर।
इसमें विशेषण अन्य किसी विशेषण से तुलित न होकर सीधे व्यक्त होता है। दूसरे शब्दों में, इस अवस्था में किसी विशेषण के गुण या दोष की तुलना दूसरी वस्तु से नहीं की जाती; जैसे— सुंदर, मधुर, महत, वीर।
ऊपर दिए गए सीमित शब्दों के रूप केवल संस्कृतनिष्ठ हिंदी में चलते हैं। हिंदी की प्रकृति संस्कृत से भिन्न होने के कारण सामान्यतः ‘तर’ के स्थान पर ‘से’ और ‘में’ का और ‘तम’ के स्थान पर ‘सबसे’ और ‘सबमें’ जैसे शब्दों का प्रयोग अधिक होता है। इतना ही नहीं, ‘से अधिक’, ‘से ज्यादा’, ‘से भी अधिक’, ‘से कम’, ‘से भी कम’, ‘से कुछ कम’, ‘से बढ़कर’, ‘से कहीं’ जैसे प्रत्यय-पदों का भी प्रयोग होता है। जैसे–
से अधिक — हरि श्याम से अधिक बड़ा है।
से भी अधिक – हरि श्याम से भी अधिक बड़ा है।
से कहीं – वह तुमसे कहीं अच्छा है।
से बढ़कर – वह तुमसे बढ़कर है।
मूलावस्था का अन्य उदहारण
अंशु अच्छी लड़की है। |
आशु सुन्दर है। |
भगतसिंह वीर सिपाही थे। |
सेब मधुर है। |
फूल महक है। |
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2. उत्तरावस्था (Comparative Degree)
जब दो व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच अधिकता या न्यूनता की तुलना होती है, तब उसे विशेषण की उत्तरावस्था कहते हैं। जैसे-
दूसरे शब्दों में:- इसमें विशेषण दो वस्तुओं की तुलना में होता है और उनमें किसी एक वस्तु के गुण या दोष अधिक बताए जाते हैं। जैसे-घोषबाबू घनश्याम से अधिक समझदार हैं। जैसे :-
घोषबाबू घनश्याम से अधिक समझदार हैं। |
अंशु आशु से अच्छी लड़की है। |
अंशु आशु से अच्छी लड़की है। |
आशु अंशु से सुन्दर है। |
बच्ची फूल से भी कोमल है। |
उत्तरावस्था में केवल तत्सम शब्दों में ‘तर‘ प्रत्यय लगाया जाता है। जैसे–
सुन्दर + तर > सुन्दरतर
महत् + तर > महत्तर
लघु + तर > लघुतर
अधिक + तर > अधिकतर
दीर्घ + तर > दीर्घतर
हिन्दी में उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए ‘से‘ और ‘में‘ चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
बच्ची फूल से भी कोमल है।
इन दोनों लड़कियों में वह सुन्दर है।
विशेषण की उत्तरावस्था का बोध कराने के लिए ‘के अलावा‘, ‘की तुलना में‘, ‘के मुकाबले‘ आदि पदों का प्रयोग भी किया जाता है। जैसे—
पटना के मुकाबले जमशेदपुर अधिक स्वच्छ है।
संस्कृत की तुलना में अंग्रेजी कम कठिन है।
आपके अलावा वहाँ कोई उपस्थित नहीं था।
3. उत्तमावस्था (Superlative Degree)
यह विशेषण की सर्वोत्तम अवस्था है। जब दो से अधिक व्यक्तियों या वस्तुओं के बीच तुलना की जाती है और उनमें से एक को श्रेष्ठता या निम्नता दी जाती है, तब विशेषण की उत्तमावस्था कहलाती है। जैसे—
दूसरे शब्दों में
इसमें विशेषण द्वारा किसी वस्तु को सबसे अधिक गुणशाली या दोषी बताया जाता है। जैसे–
कपिल सबसे या सबों में अच्छा है। |
दीपू सबसे घटिया विचारवाला लड़का है। |
हमारे कॉलेज में नरेंद्र सबसे अच्छा खिलाड़ी है। |
मोहन हमारे गांव का सबसे तेज लड़का है। |
योगी भारत का सबसे शक्तिशाली नेता है। |
तत्सम शब्दों की उत्तमावस्था के लिए ‘तम‘ प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे–
सुन्दर + तम > सुन्दरतम
महत् + तम > महत्तम
लघु + तम > लघुतम
अधिक + तम > अधिकतम
श्रेष्ठ + तम > श्रेष्ठतम
‘श्रेष्ठ‘, के पूर्व, ‘सर्व‘ जोड़कर भी इसकी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है। जैसे–
नीरज सर्वश्रेष्ठ लड़का है।
फारसी के ‘ईन‘ प्रत्यय जोड़कर भी उत्तमावस्था दर्शायी जाती है। जैसे–
बगदाद बेहतरीन शहर है।
विशेषणों का रूपान्तर
विशेषण का अपना लिंग-वचन नहीं होता। वह प्रायः अपने विशेष्य के अनुसार अपने रूपों को परिवर्तित करता है। हिन्दी के सभी विशेषण दोनों लिंगों में समान रूप से बने रहते हैं; केवल आकारान्त विशेषण स्त्री० में ईकारान्त हो जाया करता है।
अपरिवर्तित रूप
1. वह अपने परिवार की भीतरी कलह से परेशान है। |
2. उसका पति बड़ा उड़ाऊ है। |
3. उसकी पत्नी भी उड़ाऊ ही है। |
4. बिहारी लड़कियाँ भी कम सुन्दर नहीं होतीं। |
5. बिहारी लड़के भी कम प्रतिभावान् नहीं होते। |
परिवर्तित रूप
1. बच्ची बहुत भोली-भाली थी। |
2. अच्छा लड़का सर्वत्र आदर का पात्र होता है। |
3. विद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं। |
4. राक्षसी मायाविनी होती थी। |
5. बच्चा बहुत भोला-भाला था। |
6. हमारे वेद में ज्ञान की बातें भरी पड़ी हैं। |
विशेषण के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1. जिन विशेषण शब्दों के अन्त में ‘इया’ रहता है, उनमें लिंग के कारण रूप परिवर्तन नहीं होता। जैसे-
- मुखिया, दुखिया, बढ़िया, घटिया, छलिया।
- दुखिया मर्दों की कमी नहीं है इस देश में ।
- दुखिया औरतों की भी कमी कहाँ है इस देश में।
2. उर्दू के उम्दा, ताजा, जरा, जिंदा आदि विशेषणों का रूप भी अपरिवर्तित रहता है। जैसे-
- आज की ताजा खबर सुनो।
- पिताजी ताजा सब्जी लाये हैं।
- वह आदमी अब तलक जिंदा है
- वह लड़की अभी तक जिंदा है।
3. सार्वनामिक विशेषणों के रूप भी विशेष्यों के अनुसार ही होते हैं। जैसे-
- जैसी करनी वैसी भरनी
- यह लड़का—वह लड़की
- ये लड़के–वे लड़कियाँ
4. जो तद्भव विशेषण ‘आ’ नहीं रखते उन्हें ईकारान्त नहीं किया जाता है। स्त्री० एवं पुं० बहुवचन में भी उनका प्रयोग वैसा ही होता है। जैसे-
- ढीठ लड़का कहीं भी कुछ बोल जाता है।
- ढीठ लड़की कुछ-न-कुछ करती रहती है।
- वहाँ के लड़के बहुत ही ढीठ हैं।
5. जब किसी विशेषण का जातिवाचक संज्ञा की तरह प्रयोग होता है तब स्त्री- पुँ. भेद बराबर स्पष्ट रहता है। जैसे-
- उस सुन्दरी ने पृथ्वीराज चौहान को ही वरण किया।
- उन सुन्दरियों ने मंगलगीत प्रारंभ कर दिए।
6. परन्तु, जब विशेषण के रूप में इनका प्रयोग होता है तब स्त्रीत्व-सूचक ‘ई’ का लोप हो जाता है। जैसे—
- उन सुन्दर बालिकाओं ने गीत गाए।
- चंचल लहरें अठखेलियाँ कर रही हैं।
- मधुर ध्वनि सुनाई पड़ रही थी।
7. जिन विशेषणों के अंत में ‘वान्’ या ‘मान्’ होता है, उनके पुँल्लिंग दोनों वचनों में ‘वान्’ या ‘मान्’ और स्त्रीलिंग दोनों वचनों में ‘वती’ या ‘मती’ होता है। जैसे-
गुणवान लड़का | गुणवान् लड़के |
बुद्धिमान् लड़का | बुद्धिमान् लड़के |
बुद्धिमती लड़की | बुद्धिमती लड़कियाँ |
गुणवती लड़की | गुणवती लड़कियाँ |
पूछे जाने वाला सामन्य प्रश्न – FAQs
Q. विशेषण किसे कहते हैं इसके कितने भेद हैं उदाहरण सहित?
संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द को विशेषण कहते हैं। जैसे; सुंदर, कुरूप, लंबा, नाटा, अच्छा, बुरा आदि. विशेषण के चार भेद गुणवाचक विशेषण, संख्यावाचक विशेषण, परिमाणवाचक विशेषण, सार्वनामिक विशेषण होते है.
Q. विशेषण के कितने प्रकार के होते हैं?
हिंदी व्याकरण में विशेषण के भेद पर थोड़ा सा मतभेद है. क्योंकि, कई व्याकरण इसके चार भेद बताते और कुछ पांच. लेकिन सबसे अधिक अध्ययन विशेष के चार चार भेदों का किया गया है, जो इस प्रकार है.
- सार्वनामिक विशेषण
- गुणवाचक विशेषण
- संख्यावाचक विशेषण
- परिमाणवाचक विशेषण
Q. विशेषण कैसे बनाया जाता है?
हिंदी व्याकरण में विशेषण की रचना संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, अव्यय आदि शब्दों के साथ विशेष नियम के अनुसार उपसर्ग, प्रत्यय आदि लगाकर की जाती है।
Q. विशेषण की पहचान कैसे करे?
जिस शब्द से किसी संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता व्यक्त हो, तो उसे विशेषण के रूप में पहचाना जाता है.जैसे; “प्रियंका बहुत सुंदर है”, इस वाक्य में प्रियंका की विशेषता “सुंदर” शब्द से है अतः यहां “सुंदर” विशेषण है। और “बहुत” शब्द प्रविशेष्य है जो विशेषण की विशेषता बता रहा है।