हिंदी व्याकरण के सबसे महतवपूर्ण भाग प्रत्यय है. क्योंकि, इसे शब्दांश के अंत में जोड़कर शब्द बनाया जाता हैं. अर्थात, प्रत्यय शब्दों के अंत में जुड़कर अपने अनुसार शब्दों के अर्थ में परिवर्तन करते है. इसलिए, ग्रामर में इस टॉपिक का अध्ययन महतवपूर्ण माना गया है. इससे प्रतियोगिता एवं अकादमिक एग्जाम में प्रश्न भी पूछा जाता है.
यहाँ Pratyay की परिभाषा, उदाहरण, नियम, भेद आदि का विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है. जो इसके सम्बन्ध सभी आवश्यक जानकारी प्रदान करता है. सामान्यतः प्रत्यय का उपयोग शब्दों के अंत में होता है.
प्रत्यय की परिभाषा | Pratyay in Hindi
जो शब्दांश, शब्दों के अंत मे जुड़कर अर्थ में परिवर्तन लाते है, उसे प्रत्यय कहते है।
दुसरें शब्दों में, प्रत्यय किसे कहते है?
दरअसल, प्रत्यय वह शब्दांश है, जो किसी घातु या अन्य शब्द के अंत में जुड़कर एक नया शब्द बनाता है, उसे प्रत्यय कहते है.
प्रत्यय’ दो शब्दों से बना है, प्रति + अय। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में’, ‘पर बाद में’ है और ‘अय’ का अर्थ ‘चलनेवाला’ है। अतएव, ‘प्रत्यय’ का अर्थ है ‘शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला’। प्रत्यय उपसर्गों की तरह अविकारी शब्दांश हैं, जो शब्दों के बाद जोड़े जाते हैं। जैसे-‘भला’ शब्द में ‘आई’ प्रत्यय लगाने से ‘भलाई’ शब्द बनता है। यहाँ प्रत्यय ‘आई’ है।
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प्रत्यय के भेद
मूलतः प्रत्यय के दो प्रकार हैं.
- (क) कृत् प्रत्यय
- (ख) तद्धित प्रत्यय
(क) कृत्-प्रत्यय
क्रिया या धातु के अंत में प्रयुक्त होनेवाले प्रत्ययों को ‘कृत्’ प्रत्यय कहते हैं और उनके मेल से बने वाले शब्द को ‘कृदंत’ कहा जाता है।
ये प्रत्यय क्रिया या धातु को नया रूप देते हैं। इनसे संज्ञा और विशेषण बनते हैं। यहाँ द्रष्टव्य यह है कि हिंदी में क्रियाओं के अंत का ‘ना’ हटा देने पर जो अंश रह जाता है, वही धातु है। जैसे-कहना की कह, चलना की चल् धातु में ही प्रत्यय लगते हैं। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:
(क) कृत्–प्रत्यय | क्रिया | शब्द |
वाला | गाना | गानेवाला |
हार | होना | होनहार |
ऐया, वैया | रखना, खेना | रखैया, खेवैया |
इया | छलना, जड़ना | छलिया, जड़िया |
(ख) कृत्–प्रत्यय | धातु | शब्द |
अक | कृ | कारक |
अन | नी | नयन |
ति | शक् | शक्ति |
(ग) कृत्–प्रत्यय | क्रिया | शब्द |
तव्य | कृ | कर्तव्य |
यत् | दा | देय |
(घ) कृत्–प्रत्यय | धातु | विशेषण |
क्त | भू | भूत |
क्त | मद् | मत्त |
क्त (न) | खिद् | खिन्न |
क्त (ण) | जरी | जीर्ण |
मान | विद् | विद्यमान |
ऊपर दिए गए उदाहरणों से स्पष्ट है कि क्रिया अथवा धातु के अंत में कृत् प्रत्यय लगाकर कृदंत बनाए जाते हैं। बने हुए नए शब्द संज्ञा और विशेषण दोनों हो सकते हैं।
कृत के भेद
हिंदी में रूप के अनुसार ‘कृदंत’ के दो भेद हैं;
- कर्तृवाचक कृत प्रत्यय
- विशेषणवाचक कृत प्रत्यय
- भाववाचक कृत प्रत्यय
- कर्मवाचक कृत प्रत्यय
- करणवाचक कृत प्रत्यय
- क्रियाद्योतक कृत प्रत्यय
विकारी कृदंतों का प्रयोग प्रायः संज्ञा या विशेषण के सदृश होता है और कृदंत अव्यय का प्रयोग क्रियाविशेषण या कभी-कभी संबंधसूचक के समान होता है।
हिन्दी क्रियापदों के अन्त में कृत् प्रत्ययों के योग से निम्नलिखित प्रकार के कृदन्त बनाए जाते हैं—
(i) कर्तृवाचक कृदन्त:-
कर्तृवाचक कृदन्त क्रिया करनेवाले का बोध कराते हैं यानी ये कृदन्त प्रायः कर्त्ता कारक का काम करते हैं। जैसे—
- पीना + वाला = पीनेवाला
कर्तृवाचक कृदन्त बनाने की निम्नलिखित विधियाँ हैं—
(a) क्रिया के सामान्य रूप के ‘ना‘ को ‘ने‘ करके आगे ‘वाला‘ जोड़कर प्रत्यय बनाते है ।जैसे–
- देखना + वाला = देखनेवाला
- पढ़ना + वाला = पढ़नेवाला
- जानना + वाला = जाननेवाला
(b) क्रिया के सामान्य रूप के ‘ना‘ को ‘न‘ करके आगे ‘हार‘ या ‘सार‘ जोडकर प्रत्यय बनाते है। जैसे–
- जानना + हार = जाननहार
- मरना + हार = मरनहार
- मिलना + सार = मिलनसार
(c) धातु के आगे अक्कड़, आऊ, आक, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ओड़ा, ऐया, क, वैया आदि प्रत्यय लगाकर जैसे–
- लड़ + आका = अड़ाका
- खेल + आड़ी = खेलाड़ी/खिलाड़ी
- भूल + अक्कड़ = भुलक्कड़
Note: नीचे दिए गए क्रिया पदों/धातुओं में प्रत्यय जोड़कर कृदन्त बनाएँ गए है।
प्रत्यय | धातु | विशेषण |
अंकू | उड़ | उड़कू |
आऊ | टिक | टिकाऊ |
आक | तैर | तैराक |
आका | लड़ | लड़ाका |
आड़ी | खेल | खिलाड़ी |
आलू | झगड़ | झगड़ालू |
इया | बढ़ | बढ़िया |
इयल | अड़ | अड़ियल |
इयल | मर | मरियल |
ऐत | लड़ | लड़ैत |
ऐया | बच | बचैया |
ओड़ | हँस | हँसोड |
ओड़ा | भाग | भगोड़ा |
अक्कड़ | पी | पिअक्कड़ |
वन | सुहा | सुहावन |
वाला | पढ़ | पढ़नेवाला |
वैया | गा | गवैया |
सार | मिल | मिलनसार |
हार | रख | राखनहार |
(ii) गुणवाचक कृदन्त:
गुणवाचक कृदन्त किसी विशिष्ट गुणबोधक होते हैं। ये कृदन्त आऊ, आवना, इया, वाँ अन्तवाले होते हैं। जैसे—
- टिकना + आऊ = टिकाऊ
- बिक + आऊ = बिकाऊ
- सुहा + आवना = सुहावना
- लुभा + आवना = लुभावना
(iii) कर्मवाचक कृदन्त:
कर्मवाचक कृदन्त कर्मबोधक होते हैं यानी Sentence में object का काम करते हैं। ये प्रायः औना, ना, आदि प्रत्ययों से बनाए जाते हैं। जैसे-
- बिछना + औना = बिछौना
- करना + नी = करनी
- खेल + औना = खिलौना
- पढ़ + ना = पढ़ना
(iv) करणवाचक कृदन्त:
वे प्रत्ययान्त जो क्रिया के साधन का बोध कराते हैं। वे शब्द धातुओं में आ, आनी, ऊ, न, ना, औटी, ई, नी, औना आदि प्रत्ययों के जोड़ने से बनते हैं। जैसे–
- कस + औटी = कसौटी
- मथ + आनी = मथानी
- बेल + ना = बेलना
- झाड़ + ऊ = झाडू
प्रत्यय | धातु | करणवाचक संज्ञाएँ |
आ | झूल | झूला |
आनी | मथ | मथानी |
ई | रेत | रेती |
ऊ | झाड़ | झाडू |
औटी | कस | कसौटी |
न | बेल | बेलन |
ना | बेल | बेलना |
नी | बेल | बेलनी |
(v) भाववाचक कृदन्त:
धातु के अन्त में अ, आ, अन, आ, आई, आन, आप, आवट, आव, आवा, आवना, आस, आहट, ई, एरा, औती, क, की, गी, त, ती, ति, न, नी, ना इत्यादि प्रत्ययों के जोड़ने से बने शब्द जो भावबोधक हों ।जैसे—
- थक + आवट = थकावट
- पढ़ + आकू = पढ़ाकू
- घूम + आव = घुमाव
प्रत्यय | धातु | भाववाचक संज्ञाएँ |
अ | भर | भार |
अंत | भिड़ | भिड़ंत |
आ | फेर | फेरा |
आई | लड़ | लड़ाई |
आन | उठ | उठान |
आप | मिल | मिलाप |
आपा | पूज | पुजापा |
आव | खिंच | खिंचाव |
आवा | भूल | भुलावा |
आस | निकस | निकास |
आवना | पा | पावन |
आवनी | पा | पावनी |
आवट | सज | सजावट |
आहट | चिल्ल | चिल्लाहट |
ई | बोल | बोली |
औता | समझ | समझौता |
औती | मान | मनौती |
औवल | भूल | भुलौवल |
औनी | पीस | पिसौनी |
क | बैठ | बैठक |
की | बैठ | बैठकी |
गी | देन | देनगी |
त | खप | खपत |
ती | चढ़ | चढ़ती |
न्ती | कूट | कूटंती |
न | दे | देन |
नी | चाट | चटनी |
(vi) क्रियाद्योतक कृदन्त:
क्रियाद्योतक कृदन्त बीते हुए या गुजर रहे समय के बोधक होते हैं। मूल धातु के आगे ‘आ’ अथवा ‘या’ प्रत्यय लगाने से भूतकालिक तथा ‘ता’ प्रत्यय लगाने से वर्तमानकालिक कृदन्त बनते हैं। जैसे-
लिख + आ = लिखा पढ़ + आ = पढ़ा खा + या = खाया | भूतकालिक कृदन्त |
लिख + ता = लिखता जा + ता = जाता खा + ता = खाता | वर्तमानकालिक कृदन्त |
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(ख) तद्धित प्रत्यय
संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण के अंत में लगने वाले प्रत्यय को ‘तद्धित‘ कहा जाता है। और उनके मेल से बने शब्द को ‘तध्दितांत‘ कहते है। जैसे मानव + ता = मानवता, अच्छा + आई = अच्छाई, अपना + पन = अपनापन, एक + ता = एकता।
तद्धित प्रत्यय के निम्नलिखित रूप होते है।
(i) कर्तृवाचक:
Pratyay in Hindi Grammar: ये सभी कर्तृवाचक तद्धित हैं—आर, इया, ई, उआ, एरा, एड़ी, वाला आदि। इनके जुड़ने से किसी काम के करनेवाले, बनानेवाले या बेचनेवाले का बोध होता है। जैसे-
- दूध + वाला = दूधवाला
- सोना + आर = सुनार
प्रत्यय | संज्ञा | कर्तृवाचक |
आर | सोना | सुनार |
आर | लोहा | लुहार |
इया | आढ़त | आढ़तिया |
ई | तमोल | तमोली |
ई | तेल | तेली |
हारा | लकड़ी | लकड़हारा |
एरा | साँप | सँपेरा |
एरा | काँसा | कसेरा |
(ii) भाववाचक:
भाववाचक प्रत्ययों को संज्ञा या विशेषण के साथ जोड़ने से भाव बोध होता है। ये प्रत्यय हैं—आ, आयँध, आन, आई, आस, आयत, आहट, आरा, आवट, ई, एरा, औती, पा, पन, त्त, ता, त्व, नी, स, क आदि । जैसे
प्रत्यय | संज्ञा/सर्वनाम | भाववाचक संज्ञा |
आ | चूर | चुरा |
आई | चतुर | चतुराई |
आन | चौडा | चौड़ान |
आयत | अपना | अपनापन |
आयँध | सड़ा | सड़ायँध |
आरा | छूट | छुटकारा |
आवट | आम | अमावट |
आस | मीठा | मिठास |
आहट | कड़वा | कड़वाहट |
ई | खेत | खेती |
एरा | अंध | अंधेरा |
औती | बाप | बपौती |
त | रंग | रंगत |
ती | कम | कमती |
पन | काला | कालापन |
पन | लड़का | लड़कपन |
पा | बूढ़ा | बुढ़ापा |
स | धाम | धमस |
(iii) ऊनवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ
ऊनवाचक संज्ञाओं से वस्तु की लघुता, प्रियता, हीनता इत्यादि के भाव व्यक्त होते हैं।
ऊनवाचक तद्धित-प्रत्यय हैं– आ, इया, ई, ओला, क, की, टा, टी, डा, डी, री, ली, वा, सा इत्यादि। प्रत्ययों के साथ उदाहरण इस प्रकार हैं
प्रत्यय | संज्ञा – विशेषण | उनवाचक संज्ञाएँ |
आ | ठाकुर | ठुकरा |
इया | खाट | खटिया |
ई | ढोलक | ढोलकी |
ओला | साँप | सँपोला |
क | ढोल | ढोलक |
की | कन | कनकी |
टा | चोर | चोट्टा |
टी | बहू | बहूटी |
ड़ा | बाछा | बछड़ा |
ड़ी | टाँग | टॅगड़ी |
री | कोठा | कोठरी |
ली | टीका | टिकली |
वा | बच्चा | बचवा |
सा | मरा | मरा-सा |
(iv) संबंधवाचक तद्धितांत संज्ञाएँ
संबंधवाचक तद्धित–प्रत्यय हैं— आल, हाल, ए, एरा, एल, औती, जा इत्यादि। संज्ञा के अंत में इन प्रत्ययों को लगाकर संबंधवाचक संज्ञाएँ बनाई जाती है। जैसे-
प्रत्यय | संज्ञा | संबंधवाचक संज्ञाएँ |
आल | ससुर | ससुराल |
हाल | नाना | ननिहाल |
औती | बाप | बपौती |
जा | भाई (भातृ) | भतीजा |
ए | लेखा | लेखे |
एरा | मामा | ममेरा |
एल | नाक | नकेल |
प्रत्यय बनाने के नियम | Pratyay in Hindi Grammar
अब इन प्रत्ययों द्वारा विभिन्न वाचक संज्ञाओं और विशेषणों से विभिन्न वाचक संज्ञाओं और विशेषणों के निर्माण के प्रकार देखें:
जातिवाचक से भावाचक संज्ञाएँ
संस्कृत की तत्सम जातिवाचक संज्ञाओं के अंत में तद्धित प्रत्यय लगाकर भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। इसके उदाहरण इस प्रकार हैं-
तद्धित–प्रत्यय | संज्ञा | भाववाचक संज्ञा |
ता | शत्रु | शत्रुता |
ता | वीर | वीरता |
त्व | गुरु | गुरुत्व |
त्व | मनुष्य | मनुष्यत्व |
अ | मुनि | मौन |
य | पंडित | पांडित्य |
इमा | रक्त | रक्तिमा |
व्यक्तिवाचक से अपत्यवाचक संज्ञाएँ
अपत्यवाचक संज्ञाएँ किसी नाम के अंत में तद्धित-प्रत्यय जोड़ने से बनती हैं। अपत्यवाचक संज्ञाओं के कुछ उदाहरण ये हैं-
तद्धित–प्रत्यय | व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ | अपत्यवाचक संज्ञाएँ |
अ | वसुदेव | वासुदेव |
अ | मनु | मानव |
अ | कुरु | कौरव |
अ | पृथा | पार्थ |
अ | पांडु | पांडव |
य | दिति | दैत्य |
आयन | बदर | बादरायण |
एय | राधा | राधेय |
एय | कुंती | कौंतेय |
विशेषण से भाववाचक संज्ञाएँ
विशेषण के अंत में संस्कृत के निम्नलिखित तद्धित-प्रत्ययों के मेल से निम्नलिखित भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं-
तद्धित–प्रत्यय | विशेषण | भाववाचक संज्ञाएँ |
ता | बुद्धिमान् | बुद्धिमत्ता |
ता | मूर्ख | मूर्खता |
ता | शिष्ट | शिष्टता |
इमा | रक्त | रक्तिमा |
इमा | शुक्ल | शुक्लिमा |
त्व | वीर | वीरत्व |
त्व | लघु | लघुत्व |
अ | गुरु | गौरव |
अ | लघु | लाघव |
स्त्री-प्रत्यय बनाने का नियम
Pratyay in Hindi Grammar: जिन प्रत्ययों के लगाने से स्त्रीलिंग रूप बनाए जाते हैं, उन्हें ही ‘स्त्री प्रत्यय’ कहा जाता है। उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्दों के स्त्रीलिंग रूप लिखें गए है।
(i) ‘ई’ प्रत्यय लगाकर:
उदाहरण
देव + ई = देवी घोड़ा + ई = घोड़ी मामा + ई = मामी दादा + ई = दादी लड़का + ई = लड़की काला + ई = काली बकरा + ई = बकरी हमारा + ई = हमारी तुम्हारा + ई = तुम्हारी ढलवाँ + ई = ढलवाँई अच्छा + ई = अच्छी दूधवाला + ई = दूधवाली दास + ई = दासी मोटा + ई = मोटी नर्त्तक + ई = नर्तकी मक्खा + ई = मक्खी रस्सा + ई = रस्सी रोट + ई = रोटी वाला + ई = वाली पतला + ई = पतली टोपा + ई = टोपी चींटा + ई = चींटी मुर्गा + ई = मुर्गी कुमार + ई = कुमारी था + ई = थी सुन्दर + ई = सुंदरी भतीजा + ई = भतीजी भांजा + ई = भांजी पिटारा + ई = पिटारी कटोरा + ई = कटोरी छुरा + ई = छुरी | काका + ई = काकी नद + ई = नदी लँगोट + ई = लँगोटी खाया + ई = खाई गया + ई = गयी हिरन + ई = हिरनी पुत्र + ई = पुत्री गोप + ई = गोपी नगर + ई = नगरी पंचम + ई = पंचमी पोता + ई = पोती चाचा + ई = चाची फेरा + ई = फेरी नाना + ई = नानी उसका + ई = उसकी चुका + ई = चुकी घट + ई = घटी साला + ई = साली गौर + ई = गौरी सखा + ई = सखी कुर्ता + ई = कुर्ती टोपीवाला + ई = टोपीवाली बेटा + ई = बेटी गधा + ई = गधि अधेला + ई = अधेली तेरा + ई = तेरी पोथा + ई = पोथी मेरा + ई = मेरी गीदड़ + ई = गीदडी होगा + ई = होगी |
(ii) ‘इन’ प्रत्यय लगाकर:
तेली + इन = तेलिन
धोबी + इन = धोबी दर्जी + इन = दर्जीन ठठेरा + इन = ठठेरिन ग्वाला + इन = ग्वालिन हँसोड़ा + इन = हँसोडिन तैराक + इन = तैराकिन अहीर + इन = अहीरिन लड़ैत + इन = लड़ैतिन सुनार + इन = सुनारिन नाती + इन = नातिन कहार + इन = कहारिन लाला + इन = ललिन ईसाई + इन = ईसाईन | जुलाहा + इन = जुलाहिन जाननहार + इन = जाननहारिन हलवाई + इन = हलवाईन जामादार + इन = जामादारिन बाघ + इन = बाघिन लठैत + इन = लठैतिन खेलाड़ी + इन = खेलाडिन गँजेड़ा + इन = गँजेडिन पंडा + इन = पड़ित हत्यारा + इन = हत्यारिन नाई + इन = नैन रीछ + इन =रिछिन चमार + इन = चमारिन |
(iii) ‘इका’ प्रत्यय लगाकर:
पाठक = पाठिका
बालक = बालिका नायक = नायिका गायक = गायिका संरक्षक = संक्षिका दायक = दायिक परिचारक = परिचारिका श्रावक = श्राविका सेवक = सेविका लेखक = लेखिका | वाचक = वाचिका धावक = धाविका प्राध्यापक = प्राध्यापिका शिक्षक = शिक्षिका भक्षक = भक्षिक पालक = पालिका निरीक्षक = निरिक्षिक वाहक = वाहिक अध्यापक = अध्यापिका |
(iv) ‘आ’ प्रत्यय लगाकर:
सुत = सुता
आत्मज = आत्मजा कान्त = कान्ता चंचल = चंचला शिव = शिवा छात्र = छात्रा मुग्ध = मुग्धा अबल = अबला पालित = पालिता निर्बल = निर्बला श्याम = श्यामा तनय = तनया पीत = पीता प्रियतम = प्रियतमा | भवदीय = भवदीया ज्येष्ठ = ज्येष्ठा पूज्य =पूज्या शूद्र = शूद्रा महाशय = महाशया बाल = बाला शिष्य = शिष्या निर्मल = निर्मला महोदय = महोदया तनुज = तनुजा प्राचार्य = प्राचार्या प्रिय = प्रिया |
(v) ‘आइन‘ प्रत्यय लगाकर :
ओझा = ओझाइन
प्रथम = प्रथमाइन पंडित = पंडिताइन मिसिर = मिसिराइन साहू = साहूआइन बाबू = बाबूआइन बनिया = बनियाइन बुझक्कड़ = बुझक्कड़ाइन चौबे = चौबेआइन | ठाकुर = ठाकुराइन सुकुल = सुकुलाइन अनुज = अनुजाइन मूर्ख = मूर्खाइन अध्यक्ष = अध्यक्षाइन जमादार = जमादाराइन पांडेय = पांडेयाइन धुनिया =धुनियाइन |
पुहे जाने वाला समान्य प्रश्न FAQs
Q. प्रत्यय क्या है उदाहरण सहित लिखिए?
प्रत्यय वह शब्द हैं, जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्दों के अर्थ में परिवर्तन करता हैं। प्रत्यय शब्द में प्रति का अर्थ ‘साथ में, पर बाद में” और अय का अर्थ “चलने वाला” होता है. उदाहण, मिलाप, लड़ाई, कमाई, भुलावा आदि.
Q. प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं?
प्रत्यय मुख्यतः दो प्रकार के होते है: कृत् प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय
Q. कृत प्रत्यय के कितने भेद हैं?
कृत प्रत्यय के निम्नलिखित भेद होते है:
- कर्तृवाचक कृत प्रत्यय
- विशेषणवाचक कृत प्रत्यय
- भाववाचक कृत प्रत्यय
- कर्मवाचक कृत प्रत्यय
- करणवाचक कृत प्रत्यय
- क्रियाद्योतक कृत प्रत्यय
उम्मीद है कि Pratyay in Hindi Grammar आपको पसंद आया होगा. यदि कोई संदेह हो, तो कृपया हमें कमेंट अवश्य करे.