हिंदी ग्रामर में कारक का सम्बन्ध संज्ञा या सर्वनाम से होता है. अर्थात एक कार्य दुसरे से सम्बंधित होता है. बिना Karak के किसी अन्य शब्द से सम्बन्ध व्यक्त करना संभव नही है. इसलिए, हिंदी का अध्ययन विस्तार से करने के लिए “Karak के बारे में पढ़ना” आवश्यक है.
वाक्यों में कारक का शाब्दिक अर्थ “करने वाला” होता है, जो दुसरें वाक्यों एवं शब्दों से सम्बन्ध व्यक्त करता है. अर्थात् क्रिया को पूरी तरह सम्पन्न करने में किसी न किसी प्रकार की भूमिका को निभाने वाला या संज्ञा या सर्वनाम से सम्बन्ध व्यक्त करने वाला.
यहाँ Karak in Hindi Grammar से सम्बंधित परिभाषा, चिन्ह यानि विभक्ति, भेद, नियम और उदाहरण के बारे में अध्ययन करेंगे जिसका आवश्यकता एग्जाम के समय होता है. ये ऐसा टॉपिक है जिससे अकादमिक और प्रतियोगिता एग्जाम में अक्शर प्रश्न पूछा जाता है और यह एग्जाम में अच्छा मार्क्स दिलाने में भी कारगर है.
कारक की परिभाषा
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्य के अन्य शब्दों, खासकर क्रिया से अपना सम्बन्ध प्रकट करता है, वह कारक कहलाता है. जैसे;
- राम ने रावण को मारा
- उसने उसको पढ़ाया
प्रथम वाक्य में दो संज्ञा शब्द (राम तथा रावण) और एक क्रिया शब्द (मारा) है. दोनों संज्ञा शब्दों का आपस में सम्बन्ध है ही, मुख्य रूप से उनका सम्बन्ध किया से है.
दूसरे शब्दों में: कारक किसे कहते है?
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से इसका क्रिया से संबंध व्यक्त हो, उस रूप को कारक कहते हैं। जैसे;
रावण को किसने मारा? | राम ने |
राम ने किसको मारा? | रावण को |
यहाँ मरने की क्रिया राम करता है, अतः राम ने = कर्ता कारक और मारने का फल रावण पर पड़ता है, अतः रावण को = कर्म कारक.
स्पष्ट है कि करने वाला कर्ताकारक हुआ. इसका चिन्ह “ने” है और जिसपर फल पड़ा, वह कर्मकारक हुआ. इसका चिन्ह “को” है.
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वचन: परिभाषा, भेद, उदाहरण एवं नियम
हिंदी वर्णमाला की परिभाषा एवं नियम
कारक के विभक्ति
संज्ञा या सर्वनाम के साथ जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उसे विभक्ति कहते हैं।
दूसरे शब्दों में: विभक्ति किसे कहते है?
कारकों के बोध के लिए संज्ञा या सर्वनाम की आगे जो प्रत्यय चिन्ह लगाए जाते हैं, उसे ‘विभक्तिया’ कहते हैं। कुछ लोग इन्हें परसर्ग भी कहते हैं। विभक्ति से बने शब्द रूप को ‘विभक्तयत’ शब्द या ‘पद’ कहते हैं। हिंदी व्याकरण में कारकों की विभक्तिओं के ‘कारक चिन्ह’ इस प्रकार है।
विभक्तिया |
°, ने |
°,को |
से |
को, के लिए |
से |
का, के, की, रा, रे, री |
में, पर |
°, हे, अजी, अहो, अरे |
ये कारक चिन्ह के विभिन्न उदाहरण है.
परसर्ग – वाक्य में प्रयुक्त संज्ञा अथवा सर्वनाम का वाक्य के अन्य पदों के साथ संबंध बताने वाले को परसर्ग कहते हैं। संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से उसका संबंध वाक्य में प्रयुक्त अन्य शब्दों के साथ होता है, उसे परसर्ग कहते हैं।
कुछ लोग विभक्तियों के स्थान ‘परसर्ग’ लिखते है या लगाते हैं ‘उपसर्ग’ शब्द के अनुकरण पर ‘परसर्ग’ गढ़ लिया गया है। क्योकि उपसर्ग का पूर्वप्रयोग होता है और विभक्ति का परप्रयोग होता है। यदि उपसर्ग का नाम पूर्वसर्ग होता। तो विभक्तियों का नाम भी भ्रांति से परसर्ग कोई भी कह सकता था।
विभक्तिओं का प्रयोग
हिंदी व्याकरण में विभक्तिया दो तरह की होती है।
- विशिलष्ट
- संशिलष्ट
संज्ञाओ या सर्वनाम के साथ आनेवाली विभक्तियाँ अलग रहती है। जैसे – मनीष ने, पर्वत पर, प्रियंका के लिए, राकेश को। सर्वनामो के साथ विभक्तिया मिली होती है।
जैसे – उस का, किस पर, तुम को, तुम्हे, तेरा, तुम्हारा, उन्हें।
Note: तुम्हे-इन्हें में ‘को’ और तेरा-तुम्हारा में ‘का’ विभक्ति चिन्ह संशिलष्ट है अतः के लिए’- जैसे दो शब्दों की विभक्ति में पहला शब्द रचना संशिलष्ट होगा और दूसरा विशिलष्ट होगा।
जैसे – तु + रे लिए = तेरे लिए, तुम + रे लिए = तुम्हारे लिए, मै + रे लिए = मेरे लिए.
प्रत्येक कारक और उसकी विभक्ति के प्रयोग का परिचय उदाहरण सहित यहाँ दर्शाया गया है। जो कारक की पूरी समझ प्रदान करता है.
कारक के भेद
हिंदी व्याकरण में कारक आठ प्रकार के है, और कारकों के बोध के लिए संज्ञा या सर्वनाम की आगे जो प्रत्यय चिन्ह लगाए जाते हैं, उन्हें व्याकरण में ‘विभक्तिया’ कहते हैं। विभक्ति से बने शब्द रूप को ‘विभक्तयत’ शब्द या ‘पद’ कहते हैं। हिंदी व्याकरण में कारकों की विभक्तिओं के ‘चिन्ह’ इस प्रकार है।
क्रम | कारक | विभक्तिया | अर्थ |
---|---|---|---|
प्रथमा | कर्ता | ने | काम करने वाला |
द्वितीया | कर्म | को | जिस पर काम का प्रभाव पड़े |
तृतीया | करण | से, द्वारा | जिसके द्वारा कर्ता काम करें |
चतुर्थी | सम्प्रदान | को, के लिए | जिसके लिए क्रिया की जाए |
पंचमी | अपादान | से (अलग होना) | जिससे अलगाव हो |
षष्ठी | सम्बन्ध | का, की, के; ना, नी, ने; रा, री, रे | अन्य पदों से सम्बन्ध |
सप्तमी | अधिकरण | में,पर | क्रिया का आधार |
सम्बोधन | संबोधन | हे! अरे! अजी! | किसी को पुकारना, बुलाना |
हिंदी व्याकरण के अनुसार आठों कारक का अर्थ एवं कारक चिन्ह का प्रयोग नियम के अनुसार निचे अध्ययन करेंगे जिसकी आवश्यकता सबसे अधिक है.
कर्ता कारक
परिभाषा :- कर्ता कारक साधारण भाषा में समझे तो जो कार्य करता है, उसे ‘कर्ता’ कहते हैं।
दूसरे शब्दों में
वाक्य में जो शब्द काम करने वाले को प्रकट करता है उसे ‘कर्ता’ है। जैसे;
जितेश खाता है। इस वाक्य में खाने का काम ‘जितेश’ करता है। अतः ‘कर्ता’ जितेश है। इसकी दो विभक्तियां है। — ने और ०
कर्ता के ‘ने’ कारक चिन्ह का प्रयोग
कर्त्ता कारक की विभक्ति ‘ने’ है। ‘ने’ का प्रयोग ज्यादातर पश्चिमी हिंदी में लिखने और बोलने के लिए होता है। क्योंकि, खड़ीबोली में ‘ने’ चिन्ह कर्ता कारक में संज्ञा शब्दो की एक विशिलष्ट विभक्ति है
‘ने‘ का प्रयोग कहाँ – कहाँ होता है?
‘ने’ का प्रयोग कर्ता के साथ तभी होता है, जब क्रिया सकर्मक तथा समान्यभूत, आसन्नभूत, पूर्णभूत, हेतुहेतुमदभूत और संदिग्ध भूतकालो की और कर्तृवाच्य की हो। जैसे;
समान्यभूत | राम ने रोटी खाई। |
आसन्नभूत | राम ने रोटी खाई है। |
पूर्णभूत | राम ने रोटी खाई थी। |
हेतुहेतुमदभूत | राम ने रोटी खाई होगी। |
संदिग्ध | राम ने पुस्तक पढ़ी होती, तो उत्तर ठीक होता। |
‘ने‘ का प्रयोग कहाँ नही होता?
- सकर्मक क्रियाओ के कर्ता के साथ भविष्यतकाल में ‘ने‘ का प्रयोग बिल्कुल नहीं होता।
कर्म कारक
जिस वाक्य में क्रिया का फल जिस शब्द पर पड़ता है।, उसे कर्म कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति चिन्ह ‘को’ है।
अर्थात, कर्ता द्वारा सम्पादित क्रिया का प्रभाव जिस व्यक्ति या वस्तु पर पड़े, उसे कर्म कारक कहते है.
दूसरे शब्द में
किसी भी वस्तु या व्यक्ति द्वारा वाक्य में की गई क्रिया का प्रभाव पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं। कर्म कारक में ‘को’ विभक्ति चिन्ह का प्रयोग होता है। इसके कुछ नियम इस प्रकार है।
कोसना, पुकारना, जागना, भागना, आदि क्रियाओ के साथ ‘को’ विभक्ति लगती है। जैसे;
मैने श्याम को बुलाया। |
मोहन और सोहन ने शोरगुल करके डाकुओं को भगाया।, |
पिता ने बच्चों को सुलाया। |
सीता ने पुत्र को पुकारा। |
गीता ने सावित्री को जी भर कोसा। |
तुमने उसको खूब सबेरे जगाया। |
राधा श्याम को बाजार भेजा। |
मारना, क्रिया का अर्थ जब पीटना हो:
ऐसे कर्म के साथ विभक्ति, पर यदि इसका अर्थ शिकार करना हो, तो विभक्ति नही लगती है। जैसे –
लोगों ने चोर को मारा। | पर – शिकारी ने बाघ मारा। |
हरि ने बैल को मारा। | पर -मछुए ने मछली मारा। |
कर्मकारक का अन्य उदाहरण।
मैंने हरि को बुलाया। |
लोगों ने चोर को मारा। |
मां ने बच्चों को सुलाया। |
हरि ने बैल को मारा। |
बाघ बकरी को खा गया। |
राम ने घोड़े को पानी पिलाया। |
विशाल ने श्वेता को तमाचा मारा। |
पुलिस ने चोर को पीटा। |
पिता ने पुत्र को पुकारा। |
लड़कों ने फूलों को तोड़ लिया। |
करण कारक
वाक्य में जिस शब्द से क्रिया के संबंध का बोध हो, उसे करण कारक कहते है। अर्थात, जो वस्तु क्रिया के संपादन में साधन का काम करे, उसे करणकारक कहते है. इसकी मुख्य पहचान ’से’ अथवा ’के द्वारा’ है।
दूसरे शब्दों में –
जिसके द्वारा किसी काम को पूरा किया जाता है, उसे करण कारक कहते है। या वह साधन जिसके द्वारा क्रिया पूरी होती है अर्थात् जिसकी जरिये कोई भी कार्य पूरा किया जाता है, उसे करण कारक कहा जाता है। इसकी विभक्ति ‘से’ है।
उदहारण:
रहीम गेंद से खेलता है। |
आदमी चोर को लाठी से मारता है। |
मैं मोटर साइकिल से बाजार जाता हूँ। |
वह कलम से पत्र लिखता है। |
लड़के गेंद से खेल रहे हैं। |
राम ने रावण को वाण से मारा |
पेड़ से फल गिरा। |
वह भूख से बेचैन है। |
हिंदी व्याकरण में करण कारक के अत्यधिक प्रत्यय चिन्ह है।, जैसे; से, द्वारा, के द्वारा, के जरिए, के बिना इत्यादि है। इन चिन्हों में अधिकतर प्रचलित ‘से’ द्वारा, के द्वारा, के जरिए इत्यादि ही है।
‘करण’ का अर्थ है ‘साधन’। अतः ‘से’ चिन्ह करणकारक का चिन्ह है। जहाँ यह ‘साधन’ के अर्थ में प्रयुक्त हो। जैसे – मुझसे यह काम न सधेगा। यहाँ ‘मुझसे’ का अर्थ है। मेरे द्वारा, मुझ साधनभूत के द्वारा या मुझ-जैसे साधन के द्वारा।
- ‘से’ करण और अपादान दोनों विभक्तियों का चिन्ह है जैसे;
करण |
मुझे अपनी कमाई से खाना मिलता है। |
वह कुल्हाड़ी से वृक्ष काटता है। |
साधुओं की संगीत से बुध्दि सुधरती है। |
अपादान |
घर से लौटा हुआ लड़का। |
पेड़ से फल गिरा। |
छत से उतरी हुई लता। |
- ‘ने’ सप्रत्यय कर्ताकारक का विभक्ति है। किंतु ‘से’ ‘के द्वारा’ और ‘के जरिए’ हिंदी में करणकारक के ही प्रत्यय माने जाते है. जैसे;
उसके द्वारा यह कथा सुनी थी। |
मुझसे यह काम नही सधेगा। |
तीर से बाघ मार दिया गया। |
आपके ही जरिए ही घर का पता चला। |
मेरे द्वारा मकान ढहाया गया था। |
संप्रदानकारक
जिसके लिए कुछ किया जाए या जिसको कुछ दिया जाए, इसका बोध करनेवाले शब्द के रूप को संप्रदान कारक कहते है।
दूसरे शब्द में –
कर्ता कारक जिसके लिए या जिस उद्देश्य के लिए क्रिया का सम्पादन करता है, वह ‘सम्प्रदान कारक’ होता है। इसकी विभक्ति ‘को’,के लिए’ है।
उदाहरण:
राम ने राधा को किताबें देता है। |
भिखारियों के लिए खाना लाओ। |
राजा के लिए फल लाया गया है। |
मैंने अंजलि के लिए कोई उपहार लाया हु। |
राजा ब्राह्मण को दान देता है। |
अमन ने शशि को गाड़ी दी। |
वह मेहमानों के लिए चाय बना रही है। |
उसने लड़कों को मिठाईयॉ दी। |
ऊपर दिए गए उदाहरण पढ़कर आप समझ ही गए होंगे की संप्रदानकारक का प्रयोग किसी ‘को‘, के लिए‘ काम कर रहा है।
जब किसी के लिए काम किया जाता है तो वहाँ संप्रदान कारक होता है। अतः यह उदहारण भी संप्रदान कारक के अंतर्गत आते है।
अर्थो में अंतर
कर्म और संप्रदान का दरअसल एक ही विभक्ति प्रत्यय है। लेकिन ‘को’ पर दोनों के अर्थों में अंतर है। संप्रदान का ‘को’ ,’के लिए’ अव्यय के स्थान पर प्रयुक्त होता है। जबकि कर्म के ‘को’, का ‘के लिए’ अर्थ से कोई संबन्ध नही होता है। नीचे दिए गए वाक्य पर ध्यान दीजिए आप समझ जाएंगे —
कर्म – महेश रमेश को मारता है। | संप्रदान – सीता अपने बहन को रुपये देती है। |
कर्म – तुम्हारे लड़के को बुलाया। | संप्रदान – आपने लड़को को कलमे दी। |
कर्म – पिता ने बच्चे को सोते देखा। | संप्रदान – बहन ने बच्चे को किताबें खरीदी। |
अपादानकारक
संज्ञा के जिस रुप से किसी वस्तु के अलग होने का भाव प्रकट हो। अर्थात, अगर क्रिया के संपादन में कोई वस्तु अलग हो जाए, उसे अपादानकारक कहते हैं।
दूसरे शब्दो में –
जब संज्ञा या सर्वनाम के किसी रूप से किन्हीं दो वस्तुओं के अलग होने का बोध हो, तो वहां अपादान कारक होता है। इसकी विभक्ति ‘से’ है।
जिस शब्द में अपादान की विभक्ति लगती है, उससे किसी दूसरी वस्तु के अलग होने का बोध होता है। लेकिन ‘से चिन्ह करण कारक‘ का भी होता है परंतु वहां इसका मतलब ‘साधन से‘ होता है। यहाँ से का मतलब किसी चीज़ से अलग होना दिखाने के लिए प्रयुक्त होता है।
उदहारण:
हिमालय से गंगा निकलती है। |
वह घर से बाहर आया। |
लड़का पेड़ से गिरा। |
चूहा बिल से बाहर निकला। |
बिल्ली छत से कूद पड़ी। |
पेड़ से डाली टूट कर गिर गई। |
राम पेड़ से नीचे गिर गया। |
राधिका गाड़ी से गिर गई। |
उसके हाथ से मोबाइल गिर गया। |
पेड़ से सेब नीचे गिर गया। |
संबंधकारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रुप से किसी अन्य शब्द के साथ लगाव प्रतीत हो, उसे संबंधकारक कहते हैं।
दूसरे शब्दों में
ऐसे शब्द जिनके माध्यम से संज्ञा एवं सर्वनाम का वह रूप जो किसी दो वस्तुओं के बीच में संबंध बताता हो, उन्हें संबंध कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति चिन्ह ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ आदि है।
जैस की आप जानते हैं की ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ विभक्ति चिन्ह संबंध कारक से होता है। यह हमें दो वस्तुओं के बीच के संबंधों को बताता है। इस उदहारण सब में भी यही विभक्ति चिन्ह है। अतः यह उदाहरण संबंध कारक के अंतर्गत आएगा। जैसे;
यह अमन का घर है। |
राजा दशरथ के चार पुत्र थे। |
यह रमेश की बहन है। |
यह प्रेमचंद के उपन्यास है। |
वाह सोने का गहना है। |
यह चूहा का बिल है? |
कुछ मुहावरे में भी संबंधकारक विभक्तिओं का प्रयोग होता है। जैसे—
महीने के महीने। |
दिन के दिन। |
रात की रात। |
दोपहर के दोपहर। |
होली की होली। |
दिवाली की दिवाली। |
कान का कच्चा। |
आंख का अंधा। |
बात का पक्का। |
गांठ का पूरा। |
बात का पक्का। |
दिल का सच्चा! |
वह आप आने का नहीं। |
वह आप जाने का नहीं। |
वह टिकने का नहीं। |
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अधिकरणकारक
जिससे क्रिया के आधार का ज्ञान प्राप्त हो, उसे अधिकरणकारक कहते हैं। इसकी विभक्ति चिन्ह ‘में’, ‘पर’ होता है।
Note: अधिकरण का अर्थ आश्रय होता है।
उदहारण:
तुम्हारे घर में चार आदमी है। |
मछली पानी में रहती है। |
दुकान पर कोई नहीं था। |
नाव जल में तैरती है। |
महल में दीपक जा रहा है। |
कुर्सी घर पर रख दो। |
कल समय पर आना। |
लड़के दरवाजे पर घूम रहे हैं। |
संबोधनकारक
संज्ञा के जिस रुप से किसी के पुकारने या संकेत करने का भाव प्रकट होता है, उसे संबोधनकारक कहते हैं।
दूसरे शब्दों में :-
संज्ञा के जिस रूप से किसी के पुकारने या बुलाने के भाव का बोध होता है, उसे संबोधनकारक कहते है। इसकी विभक्ति ‘अजी’, ‘अरे’, ‘हे’ ‘रे’,आदि होता है।
संबोधन कारक में विराम चिन्ह के रूप में (!) इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे –
हे भगवान! मेरी रक्षा कीजिए। |
हे श्याम! इधर आओ। |
अरे! तुम क्या कर रहे हो। |
अजी! सुनते हो, कहां जा रहे हो। |
अरे! अंजली तुम बहुत याद आती हो। |
कारकों को संक्षेप में इस प्रकार याद रखे
हिंदी व्याकरण में कारक को सरलता से स्मरण रखने के कई तरीके है जिसमे कुछ लोकप्रिय तरीके निचे दिया गया है जिसे फॉलो कर सरलता कारक को याद कर सकते है. इसे कारक चिन्ह का प्रयोग के अनुसार याद रख सकते है.
1. (कर्ता ने); (कर्म को); (करण से); (संप्रदान को, के लिए); (अपादान से); (संबंध का, के, की); (अधिकरण में, पर); (संबोधन हे, अरे आदि)
2. हे भरत ! राम ने, रावण को, घनुष से, सीता के लिए, रथ से उतारकर, बाणों की बौछार कर, धरती पर मार गिराया
3. Note: he भरत, संबोधनकारक है. संबोधन कारक गणना की दृष्टि से आठवें स्थान पर है, लेकिन इसका प्रयोग प्राथन स्थान पर किया जाता है. यहाँ भी संबोधन कारक वाक्य में प्रथम स्थान पर प्रयुक्त है, अतः संबोधनकारक को “प्रथमा विभक्ति” भी कहा जाता है.
विभिन्न प्रकार के भाषाओं में कारकों की संख्या
विभन्न भाषाओ में कारको की संख्या निचे दिया गया है जिससे यह पता कर सकते है कि कौन से भाषा में कितनी संख्या होती है.
भाषा | कारकों की संख्या |
हंगेरियन | 29 |
फिनिश | 15 |
बास्क | 1000 |
असमिया | 8 |
चेचन | 8 |
लैटिन | 6 |
क्रोएशियन | 7 |
पोलिश | 7 |
यूक्रेनी | 7 |
संस्कृत | 8 |
स्लोवाकी | 6 |
रूसी | 6 |
प्राकृत | 6 |
ग्रीक | 5 |
रोमानियन | 5 |
आधुनिक ग्रीक | 4 |
बुल्गारियन | 4 |
जर्मन | 4 |
अंग्रेजी | 3 |
अरबी | 3 |
नार्वेजी | 2 |
बेलारूसी | 7 |
कुछ शब्दों के कारक रूप | संज्ञा की कारक रचना
कारक | एकवचन | बहुवचन |
---|---|---|
कर्ता | बालक, बालक ने | बालक, बालकों ने |
कर्म | बालक, बालक को | बालक, बालकों को |
करण | बालक (से, द्वारा) | बालकों (से, द्वारा) |
सम्प्रदान | बालक (को, के लिए) | बालकों के लिए |
अपादान | बालक से (अलग होना) | बालकों से |
सम्बन्ध | बालक (का, की, के) | बालकों (का, के, की) |
अधिकरण | बालक (में, पर) | बालकों (में, पर) |
संबोधन | बालक (हे! अरे! अजी!) | हे बालको |
इस प्रकार संज्ञा के विभिन्न शब्दों को कारक के रूप में लिखा जा सकता है.
Karak in Hindi Grammar: FAQs
Q. कारक किसे कहते हैं कारक कितने प्रकार के होते हैं?
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्य के अन्य शब्दों से अपना सम्बन्ध प्रकट करता है, उसे कारक कहते है. कारक आठ प्रकार के होते है.
Q. हिंदी में कारक कितने होते हैं?
हिंदी व्याकरण में कारक आठ होते है. जैसे; कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण और सम्बोधन.
Q. कारक का पहचान कैसे करें?
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ संबंध ज्ञात हो, वह कारक होगा. जैसे; राम ने रावण को मारा. राम का सम्बन्ध रावण से मारने से है. अतः यहाँ कारक है.
Q. संबंध कारक चिन्ह कौन कौन होता है?
किसी व्यक्ति, वस्तु,या पदार्थ के साथ अपना कोई संबंध रखता है तो, उस संबंध सूचक शब्द में संबंध कारक कहते हैं. इसका विभक्ति चिह्न का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी आदि होते हैं.