हिंदी व्याकरण में अव्यय का महत्व सबसे अधिक इसलिए है कि इसका रूप में कोई परिवर्तन नही होता है. अर्थात, लिंग, वचन, पुरुष, कारक आदि का रूप सदैव एक ही बना रहता है. इसलिए, इसे अविकारी पद भी कहते हैं. Avyay हिंदी व्याकरण का मुख्य भाग है जिससे वैसे शब्दों का अध्ययन करते है जो सदैव अपरिवर्तित रहता है.
बोर्ड एवं प्रतियोगिता एग्जाम में Avyay से सम्बंधित प्रश्न पूछा जाता है. इसलिए, आवश्यक है कि अव्यय की परिभाषा के साथ इसके रूल्स एवं रूपों का अध्ययन नियम के अनुसार करे. यहाँ अव्यय की परिभाषा, भेद एवं उदाहरण को सरल शब्दों में दिया गया है जिसे आप सरलता से समझ सकते है.
अव्यय की परिभाषा | Avyay in Hindi
‘अव्यय’ ऐसे शब्द को कहते हैं, जिसके रूप में लिंग, वचन, पुरुष, कारक इत्यादि के कारण कोई विकार उत्पन्न नहीं होता। ऐसे शब्द हर स्थिति में अपने मूलरूप में बने रहते हैं। चूँकि अव्यय का रूपांतर नहीं होता, इसलिए ऐसे शब्द अविकारी होते हैं। इनका व्यय नहीं होता, अतः ये अव्यय हैं।
जैसे — जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, वाह, आह, ठीक, अरे, और, तथा, एवं, किंतु, परंतु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अर्थात इत्यादि। अव्यय के अंतर्गत क्रियाविशेषण, संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक शब्दों का स्थान है।
दुसरें शब्दों में, अव्यय किसे कहते है?
अव्यय या अविकारी उन शब्दों को कहते है, जिनमे, लिंग, वचन, पुरुष आदि के कारण कभी कोई परिवर्तन नही होता है. जैसे; बहुत, भरी, यहाँ, वहाँ, पीछे, और, तथा आदि.
उदाहरण:
- मैं बहुत खाता हूँ. (मैं, खाता हूँ – उत्तम पुरुष, एकवचन, पुलिंग)
- तुम बहुत खाती हो. (तुम, खाती हो – माध्यमपुरुष, बहुवचन, स्त्रीलिंग)
यहाँ दुसरें वाक्य के लिंग, वचन और पुरुष में अंतर आने से सभी शब्दों के लिंग, वचन और पुरुष में अंतर, परिवर्तन या विकार उत्पन्न हुआ. अतः ये विकारी शब्द है, परंतु “बहुत” शब्द में कोई विकार उत्पन्न नही हुआ, इसलिए, “बहुत” शब्द अविकारी या अव्यय है.
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अव्यय और क्रियाविशेषण
हिंदी व्याकरण में अव्यय और क्रियाविशेषण के सन्दर्भ में विशेषज्ञों का मतभेद है. क्योंकि, कुछ लोग अव्यय को क्रिया-विशेषण कहते हैं. लेकिन सभी अव्ययों को क्रिया-विशेषण नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि, जो अव्यय क्रिया की विशेषता प्रगट करता है, वही क्रिया-विशेषण कहलाता है.
अव्यय और क्रियाविशेषण के प्रमुख तथ्य:
1. कालवाचक अव्यय- इनमें क्रिया के समय का बोध होता है; जैसे— आज, कल, तुरत, पीछे, पहले, अब, जब, तब, कभी-कभी, बार-बार, कब, अब से, नित्य, जब से, सदा से, अभी, तभी, आजकल, लगातार, दिनभर, प्रतिदिन, परसों, और कभी।
उदाहरण:
वह बार – बार चीखता है। |
अब से ऐसी बात नहीं होगी। |
वह कब आया, मुझे पता नहीं। |
मैं अभी – अभी आया हूँ। |
ऐसी बात सदा से होती रही है। |
2. स्थानवाचक अव्यय- इससे क्रिया के स्थान का बोध होता है; जैसे—यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, तहाँ, यहाँ से, वहाँ से, इधर-उधर, अगल-बगल, चारों ओर, ऊपर-नीचे इत्यादि।
उदाहरण:
वह कहाँ जाएगा? |
वह आगे गया है। |
वहाँ कोई नहीं है। |
वह यहाँ नहीं है। |
जहाँ तुम हो, वहाँ मैं हूँ। |
3. दिशावाचक अव्यय- इससे दिशा का बोध होता है; जैसे- इधर, उधर, जिधर, दूर, परे, अलग, दाहिने, बाएँ, आरपार इत्यादी।
4. स्थितिवाचक अव्यय—इसमें क्रिया के स्थिति का बोध होता है। जैसे– नीचे ,ऊपर, तले, सामने, बाहर, भीतर, आमने-सामने इत्यादि
Note:- तक, भर, मात्र, वैसा, सा, आजकल, परसों आदि अव्यय नहीं हैं, क्योंकि इनके आगे कारक की विभक्तियों का प्रयोग होता है।
अव्यय के भेद
सामान्यतः अव्यय के पांच भेद है
- क्रियाविशेषण
- संबंधबोधक
- समुच्चयबोधक
- विस्मयादिबोधक
- निपात
1. क्रियाविशेषण
जिस शब्द से क्रिया, विशेषण या दूसरे क्रियाविशेषण की विशेषता प्रकट हो, उसे ‘क्रियाविशेषण’ कहते हैं। जैसे- राम धीरे-धीरे टहलता है; राम वहाँ टहलता है; राम अभी टहलता है।
इन वाक्यों में ‘धीरे-धीरे’, ‘वहाँ’ और ‘अभी’ राम के ‘टहलने’ (क्रिया) की विशेषता बतलाते हैं। ये क्रियाविशेषण अविकारी विशेषण भी कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त, क्रियाविशेषण दूसरे क्रियाविशेषण की भी विशेषता बताता है। जैसे-वह बहुत धीरे चलता है। इस वाक्य में ‘बहुत’ क्रियाविशेषण है; क्योंकि यह दूसरे क्रियाविशेषण ‘धीरे’ की विशेषता बतलाता है।
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क्रियाविशेषण के भेद
क्रियाविशेषण के निम्नलिखित भेद हैं।
- प्रयोग के अनुसार
- रूप के अनुसार
- अर्थ के अनुसार
‘प्रयोग’ के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद:
1. जिन क्रियाविशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतंत्र होता है, उन्हें ‘साधारण क्रियाविशेषण’ कहा जाता है। जैसे—
- हाय! अब मैं क्या करूँ?
- बेटा, जल्दी आओ; अरे! साँप कहाँ गया?
- हाय, वह अब करे तो क्या करें।
- जितेश, जल्दी आ जाना।
2. जिन क्रियाविशेषणों का संबंध किसी उपवाक्य से रहता है, उन्हें ‘संयोजक क्रियाविशेषण’ कहा जाता है। जैसे–
- जब रोहिताश्व ही नहीं, तो मैं ही जीकर क्या करूँगी; जहाँ अभी समुद्र है, वहाँ किसी समय जंगल था।
- जब परिश्रम नही तो विद्या कहा से?
3. जिन क्रियाविशेषणों के प्रयोग अवधारण (निश्चय) के लिए किसी भी शब्दभेद के साथ होता हो, उन्हें ‘अनुबद्ध क्रियाविशेषण’ कहा जाता है। जैसे—
- यह तो किसी ने धोखा ही दिया है; मैंने उसे देखा तक नहीं।
- मैंने खाया तक नही था।
‘रूप’ के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन भेद:
1. ऐसे क्रियाविशेषण, जो किसी दूसरे शब्दों के मेल से नहीं बनते, ‘मूल क्रियाविशेषण’ कहलाते हैं। जैसे- ठीक, दूर, अचानक, फिर, नहीं।
- मुझे बहुत दूर जाना है।
- मैं ठीक हूँ।
- वह अचानक आ धमका।
2. ऐसे क्रियाविशेषण, जो किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय या पद जोड़ने पर बनते हैं, ‘यौगिक क्रियाविशेषण’ कहलाते हैं। जैसे— मन से, जिससे, चुपके से, भूल से, देखते हुए, यहाँ तक, झट से, वहाँ पर। यौगिक क्रियाविशेषण संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, धातु और अव्यय के मेल से बनते है।
यौगिक क्रियाविशेषण नीचे लिखे शब्दों के मेल से बनते हैं;
(क) संज्ञाओं की द्विरुक्ति से– घर-घर, घड़ी-घड़ी, बीच-बीच, हाथों-हाथ
(ख) दो भिन्न संज्ञाओं के मेल से- दिन-रात, साँझ-सबेरे, घर-बाहर, देश-विदेश
(ग) विशेषणों की द्विरुक्ति से- एक-एक, ठीक-ठीक, साफ-साफ
(घ) क्रियाविशेषणों की द्विरुक्ति से- धीरे-धीरे, जहाँ-तहाँ, कब-कब, कहाँ-कहाँ
(ङ) दो क्रियाविशेषणों के मेल से- जहाँ-तहाँ, जहाँ-कहीं, जब-तब, जब-कभी, कल-परसों, आसपास
(च) दो भिन्न या समान क्रियाविशेषणों के बीच ‘न’ लगाने से- कभी-न-कभी, कुछ-न-कुछ
(छ) अनुकरणवाचक शब्दों की द्विरुक्ति से– पटपट, तड़तड़, सटासट, धड़ाधड़
(ज) संज्ञा और विशेषण के योग से– एक साथ, एक बार, दो बार
(झ) अव्यय और दूसरे शब्दों के मेल से– प्रतिदिन, यथाक्रम, अनजाने, आजन्म
(ञ) पूर्वकालिक कृदंत और विशेषण के मेल से— विशेषकर, बहुतकर, मुख्यकर, एक-एककर
3. ऐसे क्रियाविशेषण, जो विना रूपांतर के किसी विशेष स्थान में आते हैं, ‘स्थानीय क्रियाविशेषण’ कहलाते हैं। जैसे—
- वह अपना सिर पढ़ेगा।
- वह बैठ कर खा रहा था।
- पयालदेव अच्छा गाती है।
‘अर्थ’ के अनुसार क्रियाविशेषण के भेद:
1. रीतिबाचक क्रियाविशेषण— इस क्रियाविशेषण की संख्या गुणवाचक विशेषण की तरह बहुत अधिक है। ऐसे क्रियाविशेषण प्रायः निम्नलिखित अर्थों में आते हैं;
(क) प्रकार– ऐसे, वैसे, कैसे, मानो, धीरे, अचानक, स्वयं, स्वतः, परस्पर, यथाशक्ति, प्रत्युत, फटाफट
(ख) निश्चय – अवश्य, सही, सचमुच, निःसंदेह, बेशक, जरूर, अलबत्ता, यथार्थ में, वस्तुतः, दरअसल
(ग) अनिश्चय – कदाचित्, शायद, बहुतकर, यथासंभव
(घ) स्वीकार – हाँ, जी, ठीक, सच
(ङ) कारण – इसलिए, क्यों, काहे को
(च) निषेध– न, नहीं, मत
(छ) अवधारण– तो, ही, भी, मात्र, भर, तक, सा
2. परिमाणवाचक क्रियाविशेषण— इससे परिमाण (मात्रा) का बोध होता है यानी यह क्रिया की मात्रा का बोध कराता है। इसके अंतर्गत बहुत, बड़ा, बिल्कुल, अत्यन्त, अतिशय, कुछ, लगभग, प्रायः, किंचित, केवल, यथेष्ट, काफी, थोड़ा, एक-एक कर आदि।
(क) अधिकताबोधक– बहुत, अति, बड़ा, बिलकुल, सर्वथा, खूब, निपट, अत्यंत, अतिशय
(ख) न्यूनताबोधक— कुछ, लगभग, थोड़ा, टुक, प्रायः, जरा, किंचित्
(ग) पर्याप्तिवाचक– केवल, बस, काफी, यथेष्ट, चाहे, बराबर, ठीक, अस्तु
(घ) तुलनावाचक– अधिक, कम, इतना, उतना, जितना, कितना, बढ़कर
(ङ) श्रेणिवाचक– थोड़ा-थोड़ा, क्रम-क्रम से, बारी-बारी से, तिल-तिल, एक-एककर, यथाक्रम
कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों का अंतर
1. अब-अभी–’अब’ में वर्तमान समय का अनिश्चय है और ‘अभी’ का अर्थ तुरंत से है: जैसे—
- अब– अब आप जा सकते हैं।
- अब आप क्या करेंगे?
- अभी– अभी-अभी-अभी आया हूँ।
- अभी पाँच बजे हैं।
2. कहाँ-कहीं—’कहाँ’ किसी निश्चित स्थान का बोधक है और ‘कहीं’ किसी अनिश्चित स्थान का परिचायक। कभी-कभी ‘कहीं’ निषेध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। जैसे-
- कहाँ- वह कहाँ गया?
- मैं कहाँ आ गया ?
- कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली।
- कहीं— वह कहीं भी जा सकता है।
अन्य अर्थों में भी ‘कहीं’ का प्रयोग होता है;
(क) बहुत अधिक- यह पुस्तक उससे कहीं अच्छी है।
(ख) कदाचित् – कहीं बाघ न आ जाए।
(ग) विरोध- राम की माया, कहीं धूप कहीं छाया।
3. तब फिर – अंतर यह है कि ‘तब’ बीते हुए समय का बोधक है और ‘फिर’ भविष्य की ओर संकेत करता है। जैसे—
- तब – तब उसने कहा।
- तब की बात कुछ और थी।
- फिर– फिर आप भी क्या कहेंगे?
- फिर ऐसा होगा।
- ‘तब’ का अर्थ ‘उस समय’ है और ‘फिर’ का अर्थ ‘दुबारा’ है। केवल सदा उस शब्द के पहले आता है, जिसपर जोर देना होता है, लेकिन, मात्र’, ही’, उस शब्द के बाद आता है।
4. न-नहीं-मत- इनका प्रयोग निषेध के अर्थ में होता है। ‘न’ से साधारण-निषेध और ‘नहीं’ से निषेध का निश्चय सूचित होता है। ‘न’ की अपेक्षा ‘नहीं’ अधिक जोरदार है। ‘मत’ का प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है। जैसे;
न– इनके विभिन्न प्रयोग इस प्रकार हैं;
(क) जाओ न, रुक क्यों गए?
(ख) न तुम सोओगे,न वह।
(ग) तुम न करोगे, तो वह कर देगा।
(घ) क्या तुम न आओगे?
नहीं— (क) तुम नहीं जा सकते।
(ख) मैंने पत्र नहीं लिखा।
(ग) मैं काम नहीं करता।
(घ) मैं नहीं जाऊँगा।
मत – (क) तुम यह काम मत करो।
(ख) तुम मत गाओ।
(ग) भीतर मत जाओ।
5. केवल-मात्र– ‘केवल’ अकेला का अर्थ और ‘मात्र’ संपूर्णता का अर्थ सूचित करता है, जैसे-
- केवल – आज हम केवल दूध पीकर रहेंगे।
- यह काम केवल वह कर सकता है।
- मात्र — मुझे पाँच रुपये मात्र मिले।
6. प्राय:- बहुधा— दोनों का अर्थ ‘अधिकतर’ है, किंतु ‘प्रायः’ से ‘बहुधा’ की मात्रा अधिक होती है।
- प्राय:- बच्चे प्रायः खिलाड़ी होते हैं।
- बहुधा- बच्चे बहुधा हठी होते हैं।
7. भला-अच्छा- ‘भला’ अधिकतर विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, पर कभी-कभी संज्ञा के रूप में भी आता है; जैसे-
- जो करे भला उसका भला ही होता है।
- ‘अच्छा’ स्वीकृतिमूलक अव्यय है। यह कभी अवधारण के लिए और कभी विस्मयबोधक के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे-
- अच्छा, कल चला जाऊँगा।
- अच्छा, आप आ गए।
8. ही-भी— बात पर बल देने के लिए इनका प्रयोग होता है। अंतर यह है कि ‘ही’ का अर्थ एकमात्र और ‘भी’ का अर्थ ‘अतिरिक्त’ सूचित करता है। जैसे-
- ही- यह काम तुम ही कर सकते हो।
- भी- इस काम को तुम भी कर सकते हो।
9. बाद-पीछे— ‘बाद’ काल का और ‘पीछे’ समय का सूचक है। जैसे-
- बाद- वह एक सप्ताह बाद आया।
- पीछे- वह पढ़ने में मुझसे पीछे है।
2. संबंधबोधक
जो अव्यय किसी संज्ञा के बाद आकर उस संज्ञा का संबंध वाक्य के दूसरे शब्द से दिखाता है, उसे ‘संबंधबोधक’ कहते हैं। यदि यह संज्ञा न हो, तो वही अव्यय क्रियाविशेषण कहलाएगा। जैसे;
- धन के बिना किसी का काम नहीं चलता;
- नौकर गाँव तक गया;
- रात भर जागना अच्छा नहीं होता।
यहाँ ‘बिना’, ‘तक’, ‘भर’ संबंधबोधक हैं। इन वाक्यों में ‘बिना’ शब्द ‘धन’ संज्ञा का संबंध ‘चलता’ क्रिया से जोड़ता है। ‘तक’ ‘गाँव’ का संबंध ‘गया’ से और ‘भर’ ‘रात’ को ‘जागना’ क्रियार्थक संज्ञा से जोड़ता है।
संबंधबोधक के भेद
प्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार संबंधबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद हैं-
प्रयोग के अनुसार ये दो प्रकार का होते है।
- संबद्ध संबंधबोधक
- अनुवद्ध संबंधबोधक
1. संबद्ध संबंधबोधक- ऐसे संबंधबोधक शब्द संज्ञा की विभक्तियों के पीछे आते हैं। जैसे—
- धन के बिना।
- नर की नाईं।
- पूजा के पहले।
- भूख के मारे।
- धन के बिना।
2. अनुवद्ध संबंधबोधक – ऐसे संबंधबोधक अव्यय संज्ञा के विकृत रूप के बाद आते हैं। जैसे-
- किनारे तक।
- सखियों सहित।
- कटोरे भर।
- पुत्रों समेत ।
अर्थ के अनुसार- संबंधबोधक अव्ययों के 13 भेदों के उदाहरण अग्रलिखित हैं-
1. कालवाचक –आगे, पीछे, बाद, पहले, पूर्व, अनंतर, पश्चात, उपरांत, लगभग आदि।
2. स्थानवाचक – आगे, पीछे, नीचे, तले, सामने, पास, निकट, भीतर, समीप, नजदीक, यहाँ, बीच, बाहर, परे, दूर आदि।
3. दिशावाचक – ओर, तरफ, पार, आरपार, आसपास, प्रति आदि।
4. साधनवाचक – द्वारा, जरिए, हाथ, मारफत, बल, कर, जबानी, सहारे आदि।
5. हेतुवाचक– लिए, निमित्त, वास्ते, हेतु, खातिर, कारण, मारे, चलते आदि।
6. विषयवाचक – बाबत, निस्बत, विषय, नाम, लेखे, जान, भरोसे आदि।
7. व्यतिरेकवाचक – सिवा, अलावा, बिना, बगैर, अतिरिक्त, रहित आदि।
8. विनिमयवाचक – पलटे, बदले, जगह, एवज आदि।
9. सादृश्यवाचक- समान, तरह, भाँति, नाई, बराबर, तुल्य, योग्य, लायक, सदृश, अनुसार, अनुरूप, अनुकूल, देखादेखी, सरीखा, सा, ऐसा, जैसा, मुताबिक आदि।
10. विरोधवाचक – विरुद्ध, खिलाफ, उलटे, विपरीत आदि
12. सहचरवाचक – संग, साथ, समेत, सहित, पूर्वक, अधीन, स्वाधीन, वश आदि।
१२. संग्रहवाचक – तक, लौं, पर्यंत, भर, मात्र आदि।
१३. तुलनावाचक – अपेक्षा, बनिस्बत, आगे, सामने आदि।
व्युत्पत्ति के अनुसार – संबंधबोधक के दो भेद हैं:
- मूल संबंधबोधक- बिना, पर्यंत, नाई, पूर्वक इत्यादि
- यौगिक संबंधबोधक – ये विभिन्न प्रकार कें शब्दों से बनते है। जैसे –
संज्ञा से – पलटे, लेखे, अपेक्षा, मारफत
विशेषण से – तुल्य, समान, उलटा, ऐसा, योग्य
क्रियाविशेषण से – ऊपर, भीतर, यहाँ, बाहर, पास, परे, पीछे
क्रिया से – लिए, मारे, चलते, कर, जाने
3. समुच्चयबोधक
“शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों को परस्पर जोड़ने या अलग करनेवाले अव्ययों को ‘समुच्चयबोधक’ अव्यय कहते हैं।” जैसे-
- वह आया और मैं गया।
- यहाँ ‘और’ दो वाक्यों को जोड़ रहा है।
- वह या मैं गया ।
यहाँ ‘या’ वह और मैं को अलग करता है।
समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं—
- समानाधिकरण समुच्चयबोधक
- व्यधिकरण समुच्चयबोधक
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक– जिन पदों या अव्ययों द्वारा मुख्य वाक्य जोड़े जाते हैं, उन्हें ‘समानाधिकरण समुच्चयबोधक’ कहते हैं।
ये भी चार प्रकार के होते हैं:
(क) संयोजक : ये दो पदों या वाक्यों को जोड़ते हैं। जैसे— और, व, एंव, तथा आदि।
- शालू, आरती, कोमल और मेधा बहुत अच्छी हैं।
- सूरज उगा और अँधेरा भागा।
(ख) विभाजक/विभक्तक – ये दो या अधिक पदों या वाक्यों को जोड़कर भी अर्थ को बाँट देते यानी अलग कर देते हैं। जैसे— या, वा, अथवा, किंवा, कि, चाहे, न, नही तो आदि।
- रणवीर या रणधीर स्कूल जाएगा।
- वह जाएगा या मैं जाऊँगा।
(ग) विरोधदर्शक – ये वाक्य के द्वारा पहले का निषेध या अपवाद सूचित करते हैं। जैसे—किन्तु, परन्तु, लेकिन, मगर अगर, वरन्, बल्कि, पर।आदि
(घ) परिणामदर्शक – इनसे जाना जाता है कि इनके आगे के वाक्य का अर्थ पिछले वाक्य के अर्थ का फल है। जैसे— इसलिए, सो, अतः, अतएव आदि।
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक– जिन पदों या अव्ययों के मेल से एक मुख्य वाक्य में एक या अधिक आश्रित वाक्य जोड़े जाते है, उन्हें व्यधिकरण समुच्चयबोधक कहते है।
(क) कारणवाचक – इस अव्यय से आरंभ होनेवाला वाक्य अपूर्ण का समर्थन करता है। इसके अंतर्गत क्योंकि जो कि, इसलिए कि आदि आते हैं।
(ख) उद्देश्यवाचक – इस अव्यय के बाद आनेवाला वाक्य दूसरे वाक्य का उद्देश्य सूचित करता है। इसमें कि, जो, ताकि, इसलिए कि का प्रयोग होता है।
(ग) संकेतवाचक – इस अव्यय के कारण पूर्व वाक्य में जिस घटना का वर्णन रहता है, उससे उत्तरवाक्य की घटना का संकेत पाया जाता है। इसके अंतर्गत कि यदि—तो, जो, तो, चाहे, परन्तु, यद्यपि—तथापि, या, तो भी आदि आते हैं।
(घ) स्वरूपवाचक – इसके द्वारा जुड़े हुए शब्दों या वाक्यों में से पहले शब्द या वाक्य का स्पष्टीकरण पिछले शब्द या वाक्य से जाना जाता है। इसके अन्तर्गत कि, जो, अर्थात् यानी, यदि आदि आते हैं।
4. विस्मयादिबोधक
जिन अव्ययों से हर्ष-शोक आदि के भाव सूचित हों, पर उनका संबंध वाक्य या उसके किसी विशेष पद से न हो, उन्हें ‘विस्मयादिबोधक’ कहते हैं।
उदहारण
काश! वह मुझे मिल जाती तो मेरा जिन्दगी सँवर जाता। |
हाय! अब मैं क्या करूँ? |
हैं! तुम क्या कह रहे हो? |
काश! वह मुझे याद करता तो जिन्दगी सँवर जाती। |
शाबाश! मेरे भाई। |
व्याकरण में विस्मयादिबोधक अव्ययों का कोई विशेष महत्त्व नहीं है। इनसे शब्दों या वाक्यों के निर्माण में कोई विशेष सहायता नहीं मिलती। इनका प्रयोग मनोभावों को तीव्र रूप में प्रकट करने के लिए होता है। ‘अब मैं क्या करूँ?’ इस वाक्य के पहले ‘हाय!’ जोड़ा जा सकता है।
विस्मयादिबोधक के निम्नलिखित भेद हैं:
1. हर्षवोधक- अहा!, वाह-वाह!, धन्य-धन्य!, जय!, शाबाश!
2. शोकबोधक- आह!, ऊह!, हा-हा!, हाय!, त्राहि-त्राहि!
3. आश्चर्यबोधक – वाह!, हैं!, ऐ!, ओहो!, क्या!
4. अनुमोदनबोधक – ठीक! वाह ! शाबाश! हाँ-हाँ! अच्छा!
5. तिरस्कारबोधक- छिह!, हट!, अरे!, दुर!, धिक!, चुप!
6. स्वीकारबोधक – हाँ!, जी हाँ!, अच्छा!, जी!, ठीक!, बहुत अच्छा!
7. संबोधनबोधक – अरे!, रे!, अजी!, लो!, जी!, हे!, अहो!
Note:
(i) विस्मयादिबोधक अव्यय के बाद विस्मयसूचक चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है।
(ii) धत् तेरे की, हैलो, बहुत खूब, क्या कहने, कौन, क्यों, कैसा, सावधान, हट, बचाओ, जा-जा आदि का प्रयोग भी विस्मयादिबोधक के रूप में होता है।
5. निपात
“निपात (Particles) उन सहायक पदों को कहा जाता है, जो वाक्यार्थ में बिल्कुल नवीन अर्थ लाते हैं।”
हिन्दी में क्या, काश, तो, भी, ही, तक, लगभग ठीक, करीब, मात्र, सिर्फ, हाँ, न, नहीं मत इत्यादि निपातों का प्रयोग होता है।
निपात के कार्य:
निपात के निम्नांकित कार्य होते हैं–
1. प्रश्नबोधक– क्या वह जा रहा है?
2. अस्वीकृतिबोधक- मेरा छोटा भाई आज वहाँ नहीं जाएगा।
3. विस्मयादिबोधक- क्या! अच्छी पुस्तक है।
4. वाक्य में किसी शब्द पर बल देना – बच्चा भी जानता है।
निपात से आश्चर्य प्रकट होता है; प्रश्न किया जाता है; निषेध किया जाता है और बल दिया जाता है।
निपात के मुख्यतया नौ प्रकार माने जाते हैं:
1. स्वीकारार्थक – हाँ, जी, जी हाँ, ……..
2. नकारात्मक – नहीं, न, जी नहीं, ………
3. निषेधार्थक – मत, ………
4. प्रश्नबोधक – क्या? न, ………
5. विस्मयार्थक – काश, क्या, …….
6. बलदायक – तो, ही, भी, तक, पर, सिर्फ, केवल, …….
7. तुलनार्थक – सा, ……
8. अवधारणार्थक – ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन, …..
9. आदरसूचक – जी, ……
निपात शुद्ध अव्यय नहीं है; क्योंकि संज्ञाओं, विशेषणों, सर्वनामों आदि में जब अव्ययों का प्रयोग होता है, तब उनका अपना अर्थ होता है, पर निपातों में ऐसा नहीं होता। निपातों का प्रयोग निश्चित शब्द, शब्द-समुदाय या पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने के लिए होता है। इसके अतिरिक्त, निपात सहायक शब्द होते हुए भी वाक्य के अंग नहीं हैं।
पर, वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थ व्यक्त होता है। साधारणतः निपात अव्यय ही है। हिंदी में अधिकतर निपात शब्दसमूह के बाद आते हैं, जिनको वे बल प्रदान करते हैं।
FAQs
Q. अव्यय क्या होता है example?
अव्यय अर्थात अविकारी उन शब्दों को कहते हैं, जिनमें लिंग, वचन, कारक इत्यादि के कारण कोई परिवर्तन नहीं होता है. जैसे; मैं बहुत पढ़ता हूँ. तुम बहुत सोती हो.
Q. अव्यय के कुल भेद कितने है लिखिए?
अव्यय के पांच भेद होते है, जो इस प्रकार है:
- क्रिया विशेषण अव्यय
- संबंधबोधक अव्यय
- समुच्चयबोधक अव्यय
- विस्मयादिबोधक अव्यय
- निपात अव्यय
Q. अव्यय कैसे पहचाने?
वैसे अविकारी शब्द जिसका लिंग, वचन पुरुष आदि परिवर्तित नही होता है, उसे अव्यय के रूप पहचाना जाता है. जैसे; जैसे- जब, तब, अभी, उधर, वहाँ, इधर, कब, क्यों, वाह, आह, किन्तु, परन्तु, बल्कि, इसलिए, अतः, अतएव, चूँकि, अवश्य आदि.