हिंदी व्याकरण में क्रिया एक महत्वपूर्ण और ज़रूरी विकारी शब्द है. क्रिया के अंतर्गत वाक्य में कुछ घटित होने का संकेत प्राप्त होता है. Kriya शब्द का शाब्दिक अर्थ कुछ करना अर्थात काम होता है. क्योंकि, किसी भी वाक्य में कर्ता द्वारा किया जाने वाला कार्य ही क्रिया होती है.
व्याकरण में क्रिया द्वारा ही किसी वाक्य को पूर्ण किया जाता है. जो दर्शाता है कि वाक्य में किसी काम को करने या होने का भाव Kriya द्वारा व्यक्त किया जाता है. क्रिया के रूप, भाव एवं महत्व को सरलता से समझने के लिए इसके भेदों का अध्ययन हिंदी व्याकरण में आवश्यक है.
क्रिया की परिभाषा
जिस शब्द या शब्द-समूह से किसी कार्य को करना या होने का बोध होता है उसे ‘क्रिया’ कहते है। जैसे खाना, पीना, जागना,रोना, सोना, आदि ।
दुसरें शब्दों में, क्रिया किसे कहते है?
वे शब्द जो किसी कार्य के होने या करने अथवा किसी व्यक्ति या वस्तु की स्थिति का बोध कराते हैं, उसे क्रिया कहते है.
Note: क्रिया विकारी शब्द है; अत इसके रूप लिंग, वचन, काल, पुरुष के अनुसार बदलते हैं। यह अपनी हिंदी की विशेषता है।
उदाहरण
राम खाता है। |
बच्चे स्कूल जाते है। |
श्याम क्रिकेट खेलता है। |
राधा नाचती है। |
कुत्ता भोक्ता है। |
क्रिया का कुछ महत्वपूर्ण बातें:
1. क्रिया का सामान्य रूप ‘ना’ अन्तवाला होता है। यानी क्रिया के अंत रूप में ‘ना’ लगा रहता है। जैसे—
खाना : खा | पढ़ना : पढ़ |
सुनना : सुन | लिखना : लिख |
नोट: यदि किसी काम या व्यापार का बोध न हो, तो ‘ना’ अन्तवाले शब्द क्रिया नहीं कहला सकते है। जैसे—
सोना महँगा है। | एक धातु है। |
वह व्यक्ति एक आँख काना है। | विशेषण |
उसका दाना बड़ा ही पुष्ट है। | संज्ञा |
2. क्रिया का साधारण रूप क्रियार्थक संज्ञा का काम भी करता है। जैसे-
सुबह का घूमना बड़ा ही अच्छा होता है।
इस वाक्य में ‘घूमना’ क्रिया नहीं है।
Note: क्रिया के विभिन्न रूप कैसे बनते है या क्रिया की उत्पत्ति कैसे होती है. यह समझने के लिए घातु की जानकारी आवश्यक है.
धातु: हिंदी व्याकरण
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते है. जैसे;
आ, जा, खा, पी, पढ़, लिख, रो, हँस, उठ, बैठ, टहल, आदि.
इन्ही मूल रूपों में ना, नी, ने, ता, ती, ते, या, यी, ये, उं, गा, गे, गी आदि प्रत्यय लगने से क्रिया के विभिन्न रूप बनते है. जैसे;
ना (प्रत्यय) | आना, जाना, खाना, पीना, पढ़ना, लिखना आदि. |
ता (प्रत्यय) | आता, जाता, खाता, पिता, पढ़ता, लिखता, आदि. |
ऊ (प्रत्यय) | आऊ, जाऊ, खाऊ, पीऊ, पढ़ूँ, लिखूँ, आदि. |
Note: हिंदी में क्रिया के सामान्य रूप मूल धातु में “ना” जोड़कर बनाया जाता है. अर्थात, क्रिया के साधारण रूपों के अंत से “ना” निकाल देने से जो शेष बचे उसे क्रिया की धातु कहते हैं.
अवश्य पढ़े,
धातु के भेद
हिंदी व्याकरण में धातु के दो भेद होते है. जो इस प्रकार है:
- मूल धातु
- यौगिक धातु
1. मूल धातु: हिंदी व्याकरण
यह यानि मूल धातु स्वतंत्र होता है, किसी दुसरें या प्रत्यय पर आश्रित नही होता है. जैसे; आ, जा, खा, ले, लिख, पढ़, चल, दे, जग, उठ, बैठ, आदि.
उदाहरण:
- इधर आ.
- आम खा.
- उधर मत जा.
- किताब पढ़
2. यौगिक धातु
सामान्य भाषा में इसे क्रिया कहते है. यह स्वतंत्र नही होता है. मूल धातु में किसी दूसरी मूल धातु या अन्य प्रत्यय को जोड़ने से यौगिक धातु बंटा है. जैसे; बैठना, जाना, बैठ जाना, हँसाना, देना, जागना, हथियाना, अपनानन आदि.
उदाहरण:
- वह इधर आ रहा है.
- तुम्हे उधर नही जाना चाहिए.
उपर्युक्त वाक्यों में आ, जा, क्रमशः रहा है, ना है पर आश्रित है.
इसे भी पढ़े,
यौगिक धातु तीन प्रकार से बंटा है
1. मूल धातु और दुसरें मूल धातु के संयोग से जो यौगिक धातु बंटा है, उसे संयुक्त क्रिया कहते है. जैसे;
मूल धातु + मूल धातु | यौगिक धातु | परिणाम |
हँस + दे बैठ + ना चल + पड़ | हँसाना बैठ जाना चल पड़ना | संयुक्त क्रिया |
2. मूल धातु में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बंटा है, वह अकर्मक या सकर्मक या प्रेनार्थक क्रिया होती है. जैसे;
मूल धातु + प्रत्यय | यौगिक धातु | परिणाम |
जग + ना जग + आना जग + वाना | जागना जगाना जगवाना | अकर्मक क्रिया सकर्मक क्रिया प्रेनार्थक क्रिया |
3. संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि शब्दों में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बंटा है, उसे नाम धातु कहते है. जैसे;
संज्ञा/सर्वनाम/विशेषण + प्रत्यय | यौगिक धातु | परिणाम |
हाथ (संज्ञा) + इयाना अपना (सर्वनाम) + ना गरम (विशेषण) + आना | हथियाना अपनाना गरमाना | नाम धातु |
क्रिया के भेद
कर्म या रचना की दृष्टि से क्रिया के भेद दो प्रकार के होता है।
- सकर्मक क्रिया
- अकर्मक क्रिया
1. सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया का फल कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े, उसे सकर्मक क्रिया कहते है।
दुसरें शब्दों में,
जिस क्रिया के व्यापार का संचालन कर्ता से हो, पर जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु, अर्थात कर्म पर पड़े, उसे सकर्मक क्रिया कहते है. जैसे
श्याम आम खाता है। इस वाक्य में ‘श्याम’ कर्ता है, ‘खाने’ के साथ उसका कर्तृरूप से संबंध है। प्रश्न होता है, क्या खाता है? उत्तर है, ‘आम’। इस तरह ‘आम’ का सीधा ‘खाने’ से संबंध है।
अतः ‘आम’ कर्मकारक है। यहाँ श्याम के खाने का फल ‘आम’ पर, अर्थात कर्म पर पड़ता है। इसलिए, ‘खाना’ क्रिया सकर्मक है।
कभी-कभी सकर्मक क्रिया का कर्म छिपा रहता है; जैसे-वह गाता है, वह पढ़ता है। यहाँ ‘गीत’ और ‘पुस्तक’ जैसे कर्म छिपे हैं।
2. अकर्मक क्रिया
“वह क्रिया, जो अपने साथ कर्म नहीं लाये अर्थात् जिस क्रिया का फल या व्यापार कर्ता पर ही पड़े, वह अकर्मक क्रिया कहलाती है।” जैसे- उल्लू दिनभर सोता है।
दरअसल, अकर्मक क्रियाओं का ‘कर्म’ नहीं होता, क्रिया का व्यापार और फल दूसरे पर न पड़कर कर्ता पर पड़ता है।
उदाहरण के लिए- श्याम सोता है। इसमें ‘सोना’ क्रिया अकर्मक है। ‘श्याम’ कर्ता है, ‘सोने’ की क्रिया उसी के द्वारा पूरी होती है।
अतः, सोने का फल भी उसीपर पड़ता है। इसलिए, ‘सोना’ क्रिया अकर्मक है।
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान ‘क्या’, ‘किसे’ या ‘किसको’ आदि प्रश्न करने से होती है। यदि कुछ उत्तर मिले, तो समझना चाहिए कि क्रिया सकर्मक है और यदि न मिले तो अकर्मक होगी। उदाहरणार्थ, मारना, पढ़ना, खाना — इन क्रियाओं में ‘क्या’ किसे’लगाकर प्रश्न किए जाएँ तो इनके उत्तर इस प्रकार होंगे.
उदाहरण:
- राम ने किशोर को मारा.
- मुकेश खाना खाया.
- राजेश किताब पढ़ता है.
प्रश्न – किसे मारा ?
उत्तर – किशोर को मारा।
प्रश्न – क्या खाया ?
उत्तर – खाना खाया।
प्रश्न – क्या पढ़ता है?
उत्तर – किताब पढ़ता है।
इन सब उदाहरणों में क्रियाएँ सकर्मक हैं।
Note: कुछ क्रियाएँ अकर्मक और सकर्मक दोनों होती हैं और प्रसंग अथवा अर्थ के अनुसार इनके भेद का निर्णय किया जाता है। जैसे-
अकर्मक | सकर्मक |
उसका सिर खुजलाता है। | वह अपना सिर खुजलाता है। |
जी घबराता है। | विपदा मुझे घबराती है। |
बूँद-बूँद से घड़ा भरता है। | मैं घड़ा भरता हूँ। |
तुम्हारा जी ललचाता है। | ये चीजें तुम्हारा जी ललचाती हैं। |
वह लजा रही है। | वह तुम्हें लजा रही है। |
अकर्मक से सकर्मक बनाने के नियम :
1. दो अक्षरों के धातु के प्रथम अक्षर को और तीन अक्षरों के धातु के द्वितीयाक्षर को दीर्घ करने से अकर्मक धातु सकर्मक हो जाता है। जैसे—
अकर्मक | सकर्मक |
लदना | लादना |
फँसना | फाँसना |
कटना | काटना |
मरना | मारना |
टलना | टालना |
पिटना | पीटना |
सँभलना | सँभालना |
बिगड़ना | बिगाड़ना |
निकलना | निकालना |
2. यदि अकर्मक धातु के प्रथमाक्षर में ‘इ’ या ‘उ’ स्वर रहे तो इसे गुण करके सकर्मक धातु बनाए जाते हैं। जैसे-
फिरना फेरना।
छिदना छेदना।
मुड़ना मोड़ना।
दिखना देखना।
3. ‘ट’ अन्तवाले अकर्मक धातु के ‘ट’ को ‘ड़’ में बदलकर पहले या दूसरे नियम से सकर्मक धातु बनाते हैं। जैसे-
फटना फोड़ना।
जुटना जोड़ना।
छूटना छोड़ना।
टूटना तोड़ना।
क्रिया के अन्य रूप
हिंदी व्याकरण में क्रिया के कुछ और रूप है जिन्हें समझना आवश्यक है:
संयुक्त क्रिया (Compound Verb)
“जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के योग से बनकर नया अर्थ देती है यानी किसी एक ही क्रिया का काम करती है, वह ‘संयुक्त क्रिया’ कहलाती है।” जैसे—
उसने खा लिया है। | (खा + लेना) |
तुमने उसे दे दिया था। | (दे + देना) |
‘संयुक्त क्रिया’ का भेद
अर्थ के विचार से संयुक्त क्रिया के कई प्रकार होते हैं—
1. निश्चयबोधक:- धातु के आगे उठना, बैठना, आना, जाना, पड़ना, डालना, लेना, देना, चलना और रहना के लगने से निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया का निर्माण होता है। जैसे—
बच्चा खेलते-खेलते गिर पड़ा। |
दाल में घी डाल देना। |
वह एकाएक बोल उठा। |
मैं उसे कब का कह आया हूँ। |
वह देखते-ही-देखते उसे मार बैठा। |
2. शक्तिबोधक:- धातु के आगे ‘सकना’ मिलाने से शक्तिबोधक क्रियाएँ बनती हैं, उसे शक्तिबोधक कहते है। दूसरे शब्दों में कहे तो जिससे कार्य करने की शक्ति का बोध होता है, उसे शक्तिबोधक कहते है। जैसे :-
वह रोगी अब उठ सकता है। |
दादाजी अब चल-फिर सकते हैं। |
वह बोल सकता है। |
वह सब कुछ कर सकता है। |
कर्ण अपना सब कुछ दे सकता है। |
3. समाप्तिबोधक :- जब धातु के आगे ‘चुकना’ रखा जाता है, तब वह क्रिया समाप्तिबोधक हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहे तो जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता, व्यापार की समाप्ति का बोध हों, वह समाप्तिबोधक क्रिया है। जैसे :-
मै आपसे कह चुका हूँ। |
वह भी यह दृश्य देख चुका है। |
वह पढ़ चुका है। |
वह खा चुका है। |
यह नाच चुकी है। |
4. नित्यताबोधक :- सामान्य भूतकाल की क्रिया के आगे ‘करना’ जोड़ने से नित्यताबोधक क्रिया बनती है। दूसरे शब्दों में कहे तो जिससे कार्य की नित्यता, उसके बंद न होने का भाव प्रकट हो, वह नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया है। जैसे–
तुम रोज यहाँ आया करना। |
तुम रोज चैनल देखा करना। |
हवा चल रही है। |
पेड़ बढ़ता गया। |
तोता पढ़ता रहा। |
5. तत्कालबोधक :- सकर्मक क्रियाओं के सामान्य भूतकालिक पुं० एकवचन रूप के अंतिम स्वर ‘आ’ को ‘ए’ करके आगे ‘डालना’ या देना’ लगाने से तत्कालबोधक क्रियाएँ बनती हैं। जैसे–
कहे डालना। |
कहे देना। |
दिए डालना। |
6. इच्छाबोधक :- सामान्य भूतकालिक क्रियाओं के आगे ‘चाहना’ लगाने से इच्छाबोधक क्रियाएँ बनती हैं। इनसे तत्काल व्यापार का बोध होता है। दूसरे शब्दों में कहे तो इससे क्रिया के करने की इच्छा प्रकट होती है जैसे–
मै लिखाना चाहता हू। |
वह पढ़ाना चाहता है। |
तुम गाना चाहते हो। |
वह घर आना चाहता है। |
मै खाना चाहता हूँ। |
7. आरंभबोधक :- क्रिया के साधारण रूप ‘ना’ को ‘ने’ करके लगना मिलाने से आरंभ बोधक क्रिया बनती है,उसे आरंभ बोधक कहते है। दूसरे शब्दों में बोले तो जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के आरंभ होने का बोध होता है, उसे आरंभबोधक संयुक्त क्रिया कहते है। जैसे–
आशु अब पढ़ने लगी है। |
मेघ बरसने लगा। |
वह पढ़ने लगा। |
राम खेलने लगा। |
सोहन नाचने लगे। |
8. अवकाशबोधक :- क्रिया के सामान्य रूप के ‘ना’ को ‘ने’ करके ‘पाना’ या ‘देना’ मिलाने से अवकाश बोधक क्रियाएँ बनती हैं। दुसरे शब्दो में कहे तो जिससे क्रिया को निष्पन्न करने के लिए अवकाश का बोध हो, उसे अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया कहते है। जैसे—
अब उसे जाने भी दो । |
देखो, वह जाने न पाए। |
आखिर तुमने उसे बोलने दिया। |
वह मुश्किल से सो पाया। |
देखो उसे, कुछ न खा पाए। |
9. परतंत्रताबोधक :- क्रिया के सामान्य रूप के आगे ‘पड़ना’ लगाने से परतंत्रताबोधक क्रिया बनती है। जैसे–
उसे पाण्डेयजी की आत्मकथा लिखनी पड़ी। |
आखिरकार बच्चन जी को भी यहाँ आना पड़ा। |
10 एकार्थकबोधक:- कुछ संयुक्त क्रियाएँ एकार्थबोधक होती हैं। जैसे—
वह अब खूब बोलता-चालता है। |
वह फिर से चलने-फिरने लगा है। |
पूर्वकालिक क्रिया
परिभाषा – जब कर्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी क्षण दूसरी क्रिया में प्रवृत्त होता है तब पहली क्रिया ‘पूर्वकालिक’ कहलाती है। जैसे—उसने नहाकर भोजन किया । इसमें ‘नहाकर’ ‘पूर्वकालिक’ क्रिया है; क्योंकि इससे ‘नहाने’ की क्रिया की समाप्ति के साथ ही
भोजन करने की क्रिया का बोध होता है।
उदहारण
चोर उठ भाग। |
वह खाकर सोता है। |
वह बैठकर खेल देखता है। |
क्रियार्थक संज्ञा
जब क्रिया संज्ञा की तरह व्यवहार में आए, तब वह ‘क्रियार्थक संज्ञा‘ कहलाती है। जैसे—
टहलना स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। |
देश के लिए मरना कहीं अच्छा है। |
नामबोधक क्रिया
संज्ञा अथवा विशेषण के साथ क्रिया जोड़ने से जो संयुक्त क्रिया बनती है, उसे ‘नामबोधक क्रिया’ कहते हैं। जैसे- संज्ञा + क्रिया-भस्म करना; विशेषण + क्रिया-दुखी होना, निराश होना
द्रष्टव्य- नामबोधक क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ नहीं हैं। संयुक्त क्रियाएँ दो क्रियाओं के योग से बनती हैं और नामबोधक क्रियाएँ संज्ञा अथवा विशेषण के मेल से बनती हैं। दोनों में यही अंतर है।
नामधातु बनाने के नियम :
1. कई शब्दों में ‘आ‘ कई में ‘या‘ और कई में ‘ला‘ के लगने से नामधातु बनते हैं। जैसे–
- मेरी बहन मुझसे ही लजाती है।
- तुमने मेरी बात झुठला दी है।
- जरा पंखे की हवा में ठंडा लो, तब कुछ कहना
2. कई शब्दों में शून्य प्रत्यय लगाने से नामधातु बनते हैं। जैसे—
- रंग : रँगना
- गाँठ : गाँठना
- चिकना : चिकनाना
3. कुछ अनियमित होते हैं। जैसे—
- दाल : दलना
- चीथड़ा : चिथेड़ना
4. ध्वनि विशेष के अनुकरण से भी नामधातु बनते हैं। जैसे—
- भनभन : भनभनाना
- छनछन : छनछनाना
- टर्र : टरटराना/टर्राना
प्रकार (अर्थ, वृत्ति):
क्रियाओं के प्रकारकृत तीन भेद होते हैं :
1. साधारण क्रिया: वह क्रिया, जो सामान्य अवस्था की हो और जिसमें संभावना अथवा आज्ञा का भाव नहीं हो। जैसे—
- मैंने देखा था। उसने क्या कहा ?
2. संभाव्य क्रिया: जिस क्रिया में संभावना अर्थात् अनिश्चय, इच्छा अथवा संशय पाया जाय। जैसे—
- यदि हम गाते थे तो आप क्यों नहीं रुक गए ?
- यदि धन रहे तो सभी लोग पढ़-लिख जाएँ।
- मैंने देखा होगा तो सिर्फ आपको ही।
3. आज्ञार्थक क्रिया या विधिवाचक क्रिया: इससे आज्ञा, उपदेश और प्रार्थनासूचक क्रियाओं का बोध होता है। जैसे—
- गरीबों की मदद करो।
- तुम यहाँ से निकलो ।
द्विकर्मक क्रिया
कुछ क्रियाएँ एक कर्मवाली और दो कर्मवाली होती हैं। जैसे- –राम ने रोटी खाई। इस वाक्य में कर्म एक ही है—– ‘रोटी’। किंतु, ‘मैं लड़के को वेद पढ़ाता हूँ’, में दो कर्म हैं— ‘लड़के को’ और ‘वेद’।
क्रिया के कार्य | Kriya Ke Upyog
व्याकरण में क्रिया के निम्नलिखित प्रमुख कार्य होते है:
1. गतिशीलता या स्थिरता का बोध कराना:
क्रिया किसी व्यक्ति या वस्तु की गतिशीलता या स्थिरता का बोध कराती है. जैसे;
लड़के दौर रहे है. लडकियाँ कूद रही है. मैं टहल रहा हूँ. | गतिशीलता |
पक्षी वृक्ष पर बैठे है. कुत्ता सोया हुआ है. घोड़ा मारा पड़ा है. | स्थिरता |
2. किसी काम के करने या होने का बोध कराना:
क्रिया इस बात का बोध कराती है कि कोई काम जन बुझकर किया जा रहा है या स्वतः हो रहा है. जैसे;
- मैं किताब पढ़ रहा हूँ. — किये जाने का बोध
- हवा बह रही है. — स्वतः होने का बोध
3. समय का बोध कराना:
क्रिया समय का भी बोध कराती है. जैसे;
- मैं पढ़ा हूँ. — वर्तमान समय का बोध
- वह पढ़ रही थी. — हिते हुए समय का बोध
- प्रियंका कल पढ़ेगी. — आने वाला समय का बोध
4. शारीरिक स्थिति का बोध कराना:
क्रिया से किसी की शारीरिक स्थिति का पता चलता है. जैसे;
- वह तैर रहा है.
- गीता बैठी है.
5. मानसिक स्थिति का बोध कराना:
क्रिया से मानसिक स्थिति का बोध होता है. जैसे;
- मनीष रो रहा है.
- गीता हँस रही है.
सामान्य प्रश्न: FAQs
Q. क्रिया क्या है और उसके भेद?
जिस शब्द या शब्द-समूह से किसी को करने या होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं. जैसे- खेलना, पढ़ना, लिखना, सोना, खाना, आना आदि. क्रिया के दो प्रमुख भेद सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया होते है.
Q. क्रिया के सही रूप कौन कौन से हैं?
हिंदी व्याकरण में क्रिया का विभाजन विभिन्न प्रकार से किया गया है:
- क्रिया
- धातु
- धातु के भेद
- मूल धातु
- सामान्य धातु
- क्रिया के भेद
- सकर्मक क्रिया
- अकर्मक क्रिया
- क्रिया के भेद रचना के आधार पर
- सामान्य क्रिया
- संयुक्त क्रिया
- नामधातु क्रिया
- प्रेरणार्थक क्रिया
- पूर्वकालिक क्रिया
Q. क्रिया का दूसरा नाम क्या है?
क्रिया का दूसरा नाम “करना अर्थात, कार्य करना या होना” होता है. सरल शब्दों में, जिस शब्द के द्वारा किसी कार्य के करने या होने का बोध हो, उसे क्रिया कहा जाता है.
Q. क्रिया किसे कहते हैं
जिस शब्द या शब्द-समूह से किसी कार्य को करना या होने का बोध होता है उसे ‘क्रिया’ कहते है.
Q. क्रिया के कितने भेद होते हैं?
क्रिया के दो प्रमुख भेद सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया होता है.